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उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनाव् के पहले समाजवादी पार्टी के चाचा भतीजे के बीच छिड़े वर्चस्व के युद्ध और वार पलटवार के वातावरण के दौरान लगातार बदलते हालात में समाजवादी पार्टी के रजत जयंती समारोह के बहाने बिहार की तर्ज पर एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी को सत्ता से दूर रखने के लिए परस्पर विरोधी विचारधारा वाली पार्टियों के साथ गठबंधन का प्रयास किया जा रहा है जिसमे शामिल होने वाली पार्टियां है , जनता दल ( यस ), जनता दल यूनाइटेड , लालू यादव की पार्टी राजद, अजीत सिंह की लोकदल और अभय चौटाला की पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल . यद्यपि इन सभी पार्टियों का उत्तर प्रदेश की राजनीती में फिलवक्त कोई जमीनी पकड़ नहीं है और न ही इनका कोई जनाधार ही है बस ये कुछ वोट काटने/ बाटने वाली पार्टियां महज है . हास्यास्पद बात तो ये है की इसमें जनता दल यूनाइटेड भी शामिल हो रही है जिसके नेता और बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह को कुछ ही महीनो पहले सार्वजानिक रूप से अवसरवादी कहते हुए बिहार में गठबंधन सफल न होने के लिए दोषी ठहराया था . इस गठबंधन के पीछे चाचा भतीजे के झगडे से पार्टी के भीतर की दो फाड् और लगातार बिगड़ते समीकरण के कारन समाजवादी पार्टी का किसी भी प्रकार से अगले पांच वर्षों के लिए सत्ता पाने की ललक साफ़ झलक रही है . साथ ही पारिवारिक विवाद से पार्टी को अपना जनाधार खिसकते जाने का डर भी सता रहा है . समाजवादी पार्टी को मालूम है की इस समय उत्तर प्रदेश में कांग्रेस तो चौथे नंबर की पार्टी है , बहुजन समाज पार्टी भी अपने विधायको के लगातार दल बदलने से लाचार होती जा रही है , ले देकर उसकी मुख्य लड़ाई भाजपा से ही है . क्योंकि एक तो ये पार्टी केंद्र में काबिज है, दूसरे नरेंद्र मोदी के रूप में पार्टी के पास एक ऐसा नेता है जिसकी लोकप्रियता न सिर्फ देश में वरन विदेशों में भी है. साथ ही अब तक के अपने कार्यकाल में भाजपा ने साफ़ सुथरी राजनीती ही की है . सर्जिकल स्ट्राइक सहित कुछ मुद्दों पर केंद्र सरकार के साथ देश की जनता जुड़ाव भी महसूस किया जा रहा है , जिसका प्रभाव उत्तर प्रदेश के चुनाव पर भी निश्चित ही पड़ेगा. यही कारण है कि विपक्षी सारी पार्टियां गिद्ध दृष्टि बनाये रखती है कि भाजपा के विरुद्ध कब कौन सा मुद्दा मिल जाये जिसे भुनाने की कोशिश की जाये और जनता के बीच अपने होने का एहसास कराया जाये . जैसा की अभी कांग्रेस और आप पार्टी ने पूर्व सैनिक के सुसाइड के मामले में किया . इसके पहले भोपाल में सिमी आतंकवादियों के एनकाउंटर को मुद्दा बनाने की कोशिश भी की गयी . वैसे देखा जाय तो समाजवादी पार्टी के इस गठबंधन में अभी से अस्थिरता झलक रही है . क्योंकि सपा और अन्य पार्टियों के साथ ये गठबंधन निहायत ही अवसरवादी और अलग अलग विचारधारा वाला है । विधान सभा चुनाव के लिए एक दूसरे की कट्टर विरोधी पार्टियों का एक साथ आ जाना, सत्ता लोलुपता और अवसरवादिता से अधिक और कुछ नहीं है .
इस बेमेल गठबंधन का हश्र क्या होगा ये तो समय ही बताएगा लेकिन ये तय है की इस निहायत ही अवसरवादी गठबंधन का प्रभाव उत्तर प्रदेश के भविष्य के साथ साथ 2019 में होने वाले लोकसभा के चुनाव पर भी दिखेगा .
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