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भारतीय संस्कृति एवं परंपरा का आधार पर्व दीपावली एक ओर तो भगवान राम के विजयोत्सव के इतिहास से जुड़ा है वहीँ दूसरी तरफ ये प्रतीक है सभी की समृद्धता , उन्नति और प्रगति का। प्रकाश पर्व दीपावली अज्ञानता ,द्धेष और हिंसा रुपी अंधकार को दूर कर प्रेम, सदभावना और सौहार्द की रोशनी से विश्व को आलोकित करने की प्रेरणा देता है। दुःख है की आधुनिकता की दौड़ में हमने अपनी परंपरा की इस थाती को भुला दिया। मिटटी के दीयों की सोंधी खुश्बू ,पारम्परिक गीत संगीत , वंदनवार और और झूमर अब बनावटी झालरों और तीव्र पटाखों के शोर में दब चुके है। ध्वनि और वायु प्रदूषण की चिंता किये बगैर हम इन्ही में अपनी ख़ुशी ढूढ़ते है। कभी कभी तो अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा के लिए हम इनके पीछे हज़ारो रूपये खर्च कर देते है .
कुछ वर्षों में अपने देश के साथ ही साथ पर्यावरण प्रदूषण एक विश्व व्यापी समस्या के रूप में उभर कर सामने आई है . संसार का लगभग हर देश प्रदूषण की भयावहता से भयभीत है . अपने देश में भी प्रतिवर्ष तापमान का स्तर बढ़ता ही जा रहा है। जिसकी बड़ी वजह दिन प्रतिदिन हमारी धरती का गर्म होते जाना है । अब तो वे जगह भी जहाँ साल में लगभग छह महीने ठण्ड रहती थी वहां भी नौ दस महीने गर्मी पड़ती है . किसी किसी राज्य में तो इसकी भयावहता इस स्तर पर पहुंच गयी है कि वहां आम जन जीवन दूभर हो गया है। नए नए स्थापित होते उद्योगों और नए पैदा होते शहरों और नगरों के लिए हमने धरती की हरियाली का विनाश किया है । हरियाली लगातार कम होती जा रही है और बिना किसी नियोजित योजना के शहर¸ सड़कें तथा फैक्टरियां बढ़ती जा रही है । जिसके परिणामस्वरुप वातावरण में अन्य प्रदूषण फैलाने वाले कारकों के साथ साथ काबर्न–डाई–ऑक्साइड की मात्रा बढ़ती जा रही है । क्यों कि ये पेड़–पौधे ही हैं जो वातावरण से काबर्न–डाई–ऑक्साइड का उपयोग कर मूल–भूत भोजन काबोर्हाइडेट्स का संश्लेषण करते हैं तथा ऑक्सीज़न की मात्रा की वातावरण में वृद्धि करते हैं। दीपावली में तो ध्वनि और वायु प्रदूषण का स्तर अपने उच्चतम पर होता है .
दीपावली में पटाखों से उठने वाले धुंए और तेज आवाजों से वायु प्रदूषण के साथ साथ ध्वनि प्रदूषण की मात्रा बहुत बढ़ जाती है। इसके अतिरिक्त हम अपने जरा से सुख और आनंद के लिए करोडो रूपये नुक्सान करते है। अगर हम चाहे तो हमारे उन्ही पैसों से अपने आस पास के गरीबों के घरों में कम से कम दीपों की रौशनी तो कर ही सकते है। सच मानिये पटाखे फोड़ने से कही ज्यादा सुख और आनन्द शायद आपको ऐसा करने से मिले। वैसे भी इस बार हम चाइनीज पटाखों , लाइट्स और अन्य सामानों का प्रयोग देश हित में न करें जैसा की सरकार भी चाहती है .
क्या इस दीवाली हम इस बात का संकल्प ले सकते है कि झालरों की बजाय हजारों लोगों की जीविका का आधार मिटटी के दीयों , देसी झूमरों और खिलौनों से घर को सजायेंगे ,पटाखों का प्रयोग नहीं करेंगे , दिवाली की सुबह की शुरुआत न सिर्फ अपने घर की वरन आसपास की सफाई से करेंगे और सबसे महत्त्वपूर्ण अपने पड़ोस के गरीब और लाचार परिवारों की जिंदगी में दीयों का प्रकाश जगमग करेंगे। ऐसा करके हमें इस पर्व को मनाने का आत्मिक सुख और संतोष भी प्राप्त होगा।
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