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आत्महत्या बनाम आत्मविश्वास

NAV VICHAR
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वर्तमान भागमभाग और अतिव्यस्त जिंदगी में हमारी महत्वाकांक्षायें दिनों दिन बढ़ती ही जा रही है। घर, कार , महंगे मोबाइल और ऐशोआराम की जिंदगी जीने की ललक हम सब के अंदर होती है। लेकिन शायद हमारे कर्तव्य ऐसे नहीं होते है जिनसे इनकी पूर्ति हो सके। ऐसे में हमारी अपेक्षाओं पूरी न होने के कारण जीवन के प्रति निराशा की भावना प्रबल होने लगती है। हताशा और निराशा हमें आत्महत्या के लिए विवश करती है। पिछले कुछ वर्षों में असफलताओं से घबराकर आत्महत्या करने की घटनाओं में तेजी से वृद्धि हुई है। विशेषकर युवा वर्ग में ये प्रबृति तेजी से पनप रही है। यदि इसके पीछे के कारणों का विश्लेषण करे तो सबसे बड़ा कारण है आत्मविश्वास की कमी। समाज के विभिन्न वर्ग के लोगो में कार्यक्षमता घटती जा रही है , कम समय में अधिक पैसा कमाने की इच्छा और असफलता से जल्दी हार मान जाने की प्रबृति आत्महत्याओं की बढ़ती संख्या का मुख्य कारण है। काल्पनिक सपने टूटते है और अति अपेक्षाएं पूरी नहीं होती है तो आत्म विश्वास की कमी की वजह से लोग जिंदगी से हताश और निराश हो जाते है। युवा वर्ग का जीवन के प्रति मोहभंग होना समाज और राष्ट्र के लिए चिंता का सबब है। एक अनुमान के अनुसार अपने देश में हर साल लगभग 2500 छात्र किसी न किसी असफलता के कारण मौत को गले लगा लेते है। उनके अंदर धैर्य समाप्त होता जा रहा है . वे ये समझ नहीं पाते की असफलता , सफलता की पहली सीढ़ी होती है। वास्तव में जिंदगी में सफल होने के लिए आत्मविश्वास की शक्ति होना महत्वपूर्ण है। साहस, निष्ठां और लगन के बगैर कामयाबी की कल्पना करना बेवकूफी होगी। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने आत्मविश्वास के बल पर ही अंग्रेजों से मोर्चा लिया था। जबतक हम अपने अंतर्मन की शक्तियों को एकरूप करके उससे शक्ति अर्जित नहीं करेंगे तबतक आंतरिक विश्वास को मजबूत कर पाना कठिन होगा। क्योंकि आत्मविश्वास की भावना कहीं बाहर नहीं वरन हमारे अंदर ही समाहित है. आत्मविश्वास का मतलब है “स्वयं पर विश्वास एवम नियंत्रण”. हमारी जिंदगी में आत्मविश्वास का होना उतना ही आवश्यक है जितना की जिंदगी में प्रेम और सद्भावना का होना। कोई भी व्यक्ति कितना भी प्रतिभाशाली क्यों न हो , आत्मविश्वास के बिना वो कुछ नहीं कर सकता। यही सफलता की नींव है। इसकी कमी से व्यक्ति स्वयं के काम पर ही संदेह करने लग जाता है और नकारात्मक विचारों से ग्रसित हो जाता है। ये गुर उसी के पास होता है जो स्वयं से संतुष्ट होता है जिसके पास दृढ निश्चय , मेहनत , साहस और लगन की संपत्ति होती है। इस दुनिया में असंभव कुछ भी नहीं। आत्मविश्वास का सबसे बड़ा दुश्मन असफलता का डर है। अगर हमें इस डर को हटाना है तो वही कार्य करना होगा जिससे हम डरते है। हमें ये बिलकुल नहीं सोचना चाहिए की फलां काम करने से लोग क्या कहेंगे। वास्तव में हमारी सबसे बड़ी समस्या यही है . हम में से अधिकांश लोग कोई भी कार्य करने से पहले कई बार यह सोचते है की वह कार्य करने से लोग उनके बारे में क्या सोचेंगे या क्या कहेंगे और इसलिए वे कोई निर्णय ले ही नहीं पाते एंव सोचते ही रह जाते है एंव समय उनके हाथ से पानी की तरह निकल जाता है| ऐसे लोग हमेशा डर-डर के जीते है और बाद में पछताते हैं| इसलिए हमें ज्यादा सोचना नहीं चाहिए जो सही लगे वही करना चाहिये क्योंकि शायद ही कोई ऐसा कार्य होगा जो सभी लोगों को एक साथ पसंद आये|
यदि हम समाज , अपने परिवार और युवा वर्ग में ऐसी भावना का संचार कर पाए तो निश्चित रूप से देश में आत्महत्या की बढ़तीघटनाओं पर रोक लग सकेगी और समाज सही दिशा में विकास के पथ पर आगे बढ़ सकेगा।

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