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पिछले कुछ दिनों में देश के कुछ नेताओं और सांसदों के अमर्यादित बोलों से पूरा देश विचलित सा हो गया है . भले ही राजनैतिक पार्टियां इसे कुछ राज्यों में होने वाले चुनाव की तैयारियों का हिस्सा मान रही हो , पर नेताओं के ऐसी भाषाओँ के इस्तेमाल से निश्चित ही विश्व के सबसे बड़े लोकतान्त्रिक देश की छवि को नुकसान हुआ है . हमारे देश की संस्कृति और परंपरा में इन बातों की कोई जगह नहीं है . हमारे घर , परिवार में बड़े बुजुर्ग हमेशा से ही ये सीख देते रहे है कि कम बोलो और मीठा बोलो , कभी भी ऐसी भाषा या शब्द का इस्तेमाल न करो जिससे दूसरों को ठेस पहुंचे क्योंकि तलवार का घाव उतना चोट नहीं पहुँचाता जितना हमारे मुख से निकले शब्द घाव पहुचाते है , तलवार का घाव तो भर जाता है पर शब्द बाण से बना घाव कभी नहीं भरता और ताजिंदगी याद रहता है पर लगता है कि हमारे देश के नेताओं को अपने बड़े बुजुर्गों कि इन सीखों से कुछ लेना देना नहीं है तभी तो बार बार एक दूसरे पर कीचड उछालते रहते है और शब्द , भाषा , आदर और सम्मान की धज्जिया उड़ाते रहते है .
उत्तर प्रदेश और पंजाब में चुनावी माहौल गरम है और इस समय हर पार्टी बस ऐसे मौकों की तलाश में है जिससे सियासी लाभ लेकर जनता को बरगलाया जा सके . उत्तर प्रदेश के भाजपा नेता दया शंकर सिंह द्वारा बा स पा सुप्रीमो मायावती पर की गयी अमर्यादित टिप्पड़ी से बिगड़े माहौल को भाजपा ने नेता को पार्टी से निकाल कर शांत करने की कोशिश तो की पर ये विवाद यहीं थमता नजर नहीं आ रहा क्योंकि बसपा सुप्रीमो सहित उनके नेताओं और समर्थकों ने दया शंकर सिंह के साथ ही उनके परिवार के सदस्यों माँ , पत्नी और बेटी के बारे में बड़े ही भद्दे शब्दों का प्रयोग सांसद के साथ साथ बाहर भी किया जिससे ये मामला और भी बिगड़ गया . अब तो मायावती और उनके नेताओं के विरुद्ध भी ऍफ़ आई आर दर्ज हो गयी . बसपा इस मुद्दे का राजनीतिकरण कर लाभ उठाना चाहती थी लेकिन अनजाने में ही सही भाजपा को बसपा पर पलटवार करने का मौका मिल गया और अब भाजपा इसका लाभ लेने की कोशिश में है .
इधर आप पार्टी के सांसद भगवंत मान के संसद के वीडियो बनाने की चर्चा के दौरान केंद्र सरकार की मंत्री हरसिमरत कौर पर कांग्रेस की रेणुका चौधरी और जयराम रमेश ने अभद्र टिप्पड़ीं कर दी जिससे संसद की गरिमा को नुक्सान पहुंचा है .
देश में चाहे चुनावी माहौल हो या कोई और समय , राजनैतिक दलों और नेताओं के बीच हमेशा ही आरोप प्रत्यारोप का दौर चलता रहता है । अब ये तो जैसे अपने देश की परंपरा ही हो गयी है। पिछले कुछ दिनों में देश के नेताओं ने अपशब्दों और अमर्यादित भाषा की जैसे नयी इबारत ही लिख दी है , इस दौरान इस बात का भी ध्यान नहीं रखा गया की कौन किस पद पर है और उसकी ऐसी बातों का देश की जनता के साथ साथ विदेशों में भारत की छवि पर क्या प्रभाव पड़ेगा . गुजरात में दलितों पर हुए अत्याचार पर भी राष्ट्रिय पार्टियों के नेताओं ने बेतुके बयां दे डाले . इन नेताओं ने तुच्छ स्वार्थ और वोट पाने की चाहत में अमर्यादित बयानों की श्रंखला ही बना डाली .
जबकि अन्य देशो में ऐसा नहीं है। वहां के नेता मितभाषी होते है और वहां का विपक्ष देश के विकास एवं प्रगति में रचनात्मक भूमिका निभाता है। यहाँ तक की वे सरकार के अच्छे कार्यो और योजनाओं की प्रसंशा भी करते है। खास कर हमारे सांसदों को भाषा पर नियंत्रण रखना चाहिए और अपनी गरिमा बनाये रखनी चाहिए क्योंकि कुछ सांसद तो कभी कभी पद कि गरिमा और मर्यादा को भी तार तार कर देते है। आये दिन अखबारों एवं टी वी चैनलों पर ऐसे विवादित बयानो से हम सब को दो चार होना पड़ता है। अब समय आ गया है की सभी दलों को इस बात पर गम्भीरता से चिंतन करने कि आवश्यकता है . इससे एक तरफ जहाँ देश का सामाजिक, राजनैतिक वातावरण दूषित हो रहा है , वहीँ दूसरी तरफ विदेशों में अपने देश की छवि भी धूमिल हो रही है। इस विषय में दलों को शीघ्र पहल करनी चाहिए। इस दिशा में मीडिया भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है , उसे अपनी टी आर पी की चिंता छोड़ कर ऐसे बयानों और ऐसे नेताओं का बहिष्कार करना चाहिए जिससे समाज और राष्ट्र का वातावरण दूषित होता है।
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