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बड़ा ही दुःख होता है जब हम ढाबों, छोटे होटलों में छह सात साल के बच्चों को काम करते देखते है या फिर अपने मुहल्लों और गलियों में कंधे पर बड़ा बड़ा थैला लादे बच्चों को प्लास्टिक और कबाड़ चुनते हुए और विवश होते है ये सोचने पर की आखिर इन बच्चों का भविष्य क्या है . अपने देश में पूरी जनसँख्या का एक बड़ा हिस्सा बच्चों और नवजवानों का है . अपने देश में उपलब्ध कुल श्रम शक्ति का लगभग 3.6 फीसदी हिस्सा 14 साल से कम उम्र के बच्चों का है. ये बड़ी ही आश्चर्यचकित करने वाला आंकड़ा है की हमारे देश में हर दस बच्चों में से 9 बच्चे कहीं न कहीं कुछ न कुछ काम करते हैं. एक अध्यन के अनुसार ये बच्चे लगभग 85 फीसदी पारंपरिक कृषि गतिविधियों में कार्यरत हैं, जबकि 9 फीसदी से कम उत्पादन, सेवा और मरम्मती कार्यों में लगे हैं. स़िर्फ 0.8 फीसदी कारखानों में काम करते हैं. इन स्तिथि के जड़ में यदि जाया जाये तो मूल समस्या गरीबी और अशिक्षा की है . बच्चों की शिक्षा के मामले में हमारा देश आज भी विकासशील देशों की श्रेणी में नीचे ही आता है . यद्यपि ये संतोषजनक है कि स्तिथि में तेजी से परिवर्तन हो रहा है . बाल श्रम के और भी अनेक कारक है . लेकिन देश की सरकार ने उन कारकों के मद्देनज़र ही राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना (एनसीएलपी) जैसे महत्वपूर्ण क़दम उठाए हैं. बाल मजदूरी को कम करने या इसे जड़ से ही समाप्त करने के लिए इस परियोजना ने महत्वपूर्ण कार्य किये हैं. इस परियोजना के तहत हज़ारों बच्चों को सुरक्षित बचाया गया है. साथ ही इस परियोजना के तहत चलाए जा रहे विशेष स्कूलों में उनका पुनर्वास भी किया गया है. क्योंकि ऐसे बच्चों के अभिभावकों की समस्या ये है कि अगर बच्चे कमाई नहीं करेंगे तो उनके परिवार का खर्च नहीं चलेगा और उन्हें भूखा ही रहना पड़ेगा .इस परियोजना के अंतर्गत खोले गए स्कूलों में ऐसे बच्चों का एडमिशन कराया जाता है . इन स्कूलों के पाठ्यक्रम भी विशेष प्रकार के रोजगारोन्मुख होते हैं, ताकि आगे चलकर इन बच्चों को मुख्यधारा के विद्यालयों में प्रवेश लेने में किसी तरह की परेशानी न हो. ये बच्चे इन विशेष विद्यालयों में न स़िर्फ बुनियादी शिक्षा हासिल करते हैं, बल्कि उनकी इच्छा, रुझान और रुचि के अनुसार व्यवसायिक प्रशिक्षण भी दिया जाता है. राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना के तहत इन बच्चों के लिए नियमित रूप से खानपान और चिकित्सकीय सहायता की व्यवस्था है. साथ ही इन्हें इनकी अन्य जरूरतों को पूरा करने के लिए एक सौ रुपये मासिक वजी़फा दिया जाता है.हज़ारों बच्चे मुख्य धारा में शामिल हो चुके हैं, इस परियोजना के माध्यम से हज़ारों बच्चों को लाभ दिया जा चूका है लेकिन अभी भी कई बच्चे बाल मज़दूर की ज़िंदगी जीने को मजबूर हैं. समाज की बेहतरी के लिए इस बीमारी को जड़ से उखाड़ना बहुत ज़रूरी है. अगर हमें इस समस्या का पूर्ण समाधान करना हैं तो हमें इस पर गम्भीरता से विचार करने की ज़रूरत है. इस महत्वपूर्ण है कि हम 14 साल से कम उम्र के बाल मज़दूरों की पहचान कैसे करें . आख़िर वे कौन से मापदंड होने चाहिए , जिनसे हम 14 साल तक के बाल मज़दूरों की पहचान सही तरीके से कर सकें और जो अंतरराष्ट्रीय स्तर मानकों के अनुरुप हो . बहुत से माता-पिता स्वयं ही बच्चों को काम करने की छूट देते है , या यूँ कहें कि उनको मजबूरन छूट देनी पड़ती है क्योंकि उनकी भूख का सवाल होता है . माता-पिता द्वारा काम पर लगाए जाने वाले ऐसे बच्चों की संख्या भी का़फी अधिक है. इन बच्चों को छोटी उम्र में ही काम पर लगा दिया जाता है और ऐसे लोगों की वजह से ही इन बच्चों पर नकारात्मक असर पड़ता है. हमें ऐसी मानसिकता पर भी रोक लगाने की जरुरत है, बाल मजदूरों की पहचान के संबंध में एक अन्य महत्वपूर्ण समस्या आती है उम्र के निर्धारण की. इस परियोजना ने इस दिशा में भी अच्छा काम किया है , इसके माध्यम से लोगों में ये जागरूकता अवश्य आई है कि अब हर कोई जानने लगा है कि 14 साल के बच्चे से काम कराना अपराध की श्रेणी में आता है. सबसे महत्वपूर्ण है सोच में बदलाव जबतक सोच में परिवर्तन नहीं होगा तबतक इस समस्या का स्थाई समाधान निकल पाना संभव नहीं है . इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि बाल श्रम की समाप्ति के लिए सरकारी प्रयासों के साथ साथ सामाजिक संगठनों के समन्वित साथ की सख्त जरुरत है .
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