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बिहार में योग का विरोध

NAV VICHAR
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भारत देश की अद्भुत लोकतान्त्रिक व्यवस्था है जहाँ की राजनीति का एक महत्वपूर्ण पहलू है “विरोध” . सत्ता पक्ष का काम अच्छा हो या बुरा ,इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता। सत्ताधारी पार्टी की योजना जनहित में हो , उनकी सोच सकारात्मक हो , इससे विपक्षी पार्टी को क्या , उसे तो उसका विरोध ही करना है क्योंकि वे विपक्ष की भूमिका में है . ये हमारे समझ के परे है कि इसे लोकतंत्र की ताकत कहे या अपने भारत की बहुत बड़ी कमजोरी । 21 जून को मनाये गए “अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस” पर जहां एक ओर पूरे विश्व के लगभग 192 देशों में योग दिवस को एक उत्सव के रूप में मनाया गया और पूरे संसार में योग का जनक होने के नाते भारत के नाम का डंका बजा वही हमारे देश के एक राज्य जिसे बिहार कहते है , वहां की सरकार ने इसका बहिष्कार किया क्योंकि उनके अनुसार ये किसी एक व्यक्ति या एक पार्टी का आयोजन था। कितनी हास्यास्पद बात है. उनके एक मंत्री जिन्हे राज्य की शिक्षा व्यवस्था की कमान सौंपी गई है , मीडिया के सामने उन्होंने बयान दिया की ये तो बाबा रामदेव और बी जे पी का कार्यक्रम है। उनकी नकारात्मक सोच और विचार पर दया न की जाए तो और क्या समझा जाए। उन्हें ये बात कहते हुए ये भी विचार नहीं आया की योग का सम्बन्ध राजनीति से नहीं वरन स्वास्थ्य से है , जिस व्यक्ति की सोच ऐसी है उसे ही राज्य की शिक्षा व्यवस्था व्यवस्था को सुधारने की जिम्मेदारी दी गई है। बिहार सरकार के यही मंत्री अभी कुछ ही दिनों पहले “डियर ” के विवाद में उलझे हुए थे। बिहार में लाइम लाइट में चल रहा “टॉपर ” कांड किसी से छुपा नहीं है , अब जिस सरकार में ऐसी ओछी मानसिकता के मंत्री होंगे तो सारा गुडग़ोबर तो होगा ही। यही नहीं जिस बाबा रामदेव से उन्हें एलर्जी है उन्ही के उत्पादों की मार्केटिंग सरकार में अहम हिस्सा रखने वाले लालू यादव ने कुछ दिनों पहले जम कर की थी और उनके महिमा मंडन में तमाम कसीदे पढ़े थे। लेकिन पटना में योग के आयोजन में सरकार के मंत्रियों और अफसरों के नाम लगी खाली कुर्सियां बिहार सरकार की कथनी और करनी के अंतर को साफ साफ बयान कर रही थी। इतना ही नहीं वहां के मुख्य मंत्री योग के महत्व को जानने समझने के बजाय एक अलग ही राग अलाप रहे है कि केंद्र सरकार शराब बंदी लागू कराये।
ये बात किसी से छुपी नहीं है की बिहार की क़ानून व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गयी है . ईमानदार सरकारी अधिकारीयों के अपहरण और हत्यायों का सिलसिला चल पड़ा . शासक दल के कार्यकर्त्ता और छुटभैये नेता दबंगई करने लगे है। वहां आम आदमी के जान की कोई कीमत नहीं . जनता दल यूनाइटेड की विधायिका के लड़के और पति की दबंगई और उद्दंडता का जीता जागता उदाहरण आजकल हम सब के सामने ज्वलंत है . इस मामले में सरकारी निष्क्रियता और पुलिस की लापरवाही हद दर्जे की है . कोर्ट से हत्यारोपी की पुलिस रिमांड न लेना , जनता के हल्ला करने पर दो दिन की पुलिस रिमांड लेने के बावजूद उसे जेल में ही रखना , मारे गए युवक के कपड़ों को पोस्टमॉर्टोम हाउस के बाहर फेंक देना , पीड़ित परिवार को धमकी देना , केस को कमजोर बनाने और सबूत मिटाने जैसा ही है . ये बात जग जाहिर है की किसी भी मामले को जितना लम्बा खींचा जाता है उसमे सच्चे न्याय की सम्भावना उतनी ही धूमिल होती जाती है . बिहार में विभिन्न हत्यायों के मामलों में ऐसा ही हुआ है . लगभग सभी मामले काल के गाल में समां गए लगते है .
विश्लेषक इस बात का संदेह पहले ही जता रहे थे कि इस सरकार में नितीश कुमार की राह बहुत आसान नहीं होगी क्योंकि लालू कि सीटें नितीश से ज्यादा है और इस सच्चाई का लाभ लालू यादव समय समय पर अवश्य ही ले रहे है . यही कारण है की वहां सुशासन और गुड गवर्नेंस के वायदे पूरे होते नहीं दिख रहे और आये दिन लूट , अपहरण और हत्या की घटनाएं घट रही है और राजनैतिक दबाव में पुलिस इसे रोक पाने में सफल नहीं हो पा रही है. इन सब पर विराम लगेगा या नहीं ये प्रश्न आज भी अबूझ पहेली जैसा ही है .

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