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पी डी पी के कद्दावर नेता मुफ़्ती मोहम्मद सईद की मृत्यु के कई महीनो बाद काफी उहा पोह और जद्दोजहद करने पर जम्मू कश्मीर में दो अलग विचारधारा वाली पार्टियों के गठबंधन से एक बार फिर सरकार का गठन हुआ . यदयपि इसके लिए निस्चय ही भारतीय जनता पार्टी को अंदरूनी रूप से कई मुद्दों पर समझौता करना पड़ा होगा . वास्तव में महबूबा मुफ़्ती की अगुआई में जम्मू कश्मीर के लिए ये एक नए अध्याय के आरम्भ जैसा था . क्योंकि सरकार बनने के साथ ही , विचारधाराओं की भिन्नता का आभास होने लगा . इतना ही नहीं सरकार के बनते ही पीडीपी ने इस बात का भी एहसास करा दिया की वे सत्ता के लिए अपनी विचारधारा से समझौता नहीं कर सकते . यही कारण है की गठबंधन से सरकार बनने का जश्न किसी भी दल ने खुले दिल से नहीं मनाया . यद्यपि राजनैतिक विश्लेषक सरकार के गठन से पहले ही इस बात के कयास लगा रहे थे कि स्थिर सरकार देना ,इतना आसान नहीं होगा . प्रधान मंत्री के दौरे के दौरान महबूबा मुफ़्ती ने वैसे तो अपने को सामान्य दिखने की कोशिश की लेकिन उनके अपने ही दल के अलगाव वादी समर्थक से पार पाना उनके लिए आसान नहीं है . उनके ऐसे ही नेताओं के दबाव में कश्मीर के विभिन्न इलाकों से सेना के बंकर हटाने का काम किया जा रहा है . एन आई टी में भारतीय झंडा लहराने और भारत माता की जय बोलने वाले छात्रों के साथ जो हुआ वो किसी से छुपा नहीं है .
हमें याद होना चाहिए की दिवंगत मुफ़्ती मोहम्मद सईद का जम्मू कश्मीर में शांतिपूर्ण चुनाव के लिए पाकिस्तान और अलगाववादी ताकतों की तारीफ करना भाजपा के लिए असहज स्तिथि पैदा करने वाली थी , इतना ही नहीं अफजल गुरु की अस्थियों को कश्मीर को वापस करने जैसा बयान देकर मुफ़्ती सईद ने अपनी विचारधारा का स्पष्ट संकेत दे दिया था . गठबंधन सरकार के गठन के आरम्भ में ही इस तरह की बातें कहकर उन्होंने इस बात का सन्देश भी दिया था कि उनकी राजनीती कुर्सी या सत्ता पाने के लिए नहीं है . अगर कुछ पीछे देंखे तो वास्तव में पीडीपी कांग्रेस से अलग हुई एक पार्टी है, जिसे पाकिस्तान से समर्थित कुछ अलगाव्वादी और उग्रवादी संगठनो का भी आशीर्वाद प्राप्त है , इसीलिए ऐसी ताकतों कि बड़ाई करना उनकी मजबूरी भी हो सकती है . उन्होंने जम्मू कश्मीर की जनता के साथ साथ उन अलगाववादी ताकतों को भरोसा दिलाने की कोशिश की थी कि साझा कार्यक्रमों के बावजूद भी कुर्सी के लिए वे भाजपा से किसी भी मुद्दे पर दबेंगे नहीं . इसके पीछे एक और बड़ा कारण जम्मू के भाजपा विधायको कि सत्ता पर आरूढ़ होने की भूख भी है, जिसे मुफ़्ती सईद ने पहचान लिया था . यही कारण है भाजपा के अंदर बेचैनी होने के बाद भी जम्मू में सरकार गठन का फैसला लेना पड़ा. यही नहीं वहां सरकार गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले कुछ सीनियर भाजपा नेताओं और संघ नेताओं की साख भी दांव पर लगी हुई थी .
पिछले दिनों जम्मू कश्मीर का राजनैतिक परिदृश्य और घटनाओं का ब्यापक राष्ट्रीय प्रभाव भी पड़ रहा है और इससे भाजपा की इमेज भी प्रभावित हो रही है. कुल मिला कर यही कहा जा सकता है की जम्मू कश्मीर में भाजपा और पी डी पी का पुनः गठबंधन अवसरवादी ही है जिसमे निश्चित रूप से लाभ की स्थिति में पी डी पी ही है . लेकिन भाजपा को सचेत रहना होगा और ध्यान रखना होगा की इन सब से वहां की जनता का नुक्सान न हो , न ही विकास बाधित हो .
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