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महिलाओं के प्रति सोच बदलनी होगी

NAV VICHAR
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भारतीय संस्कृति में नारी को सर्वोच्च स्थान दिया गया है . वेद , पुराण और हमारे इतिहास में नारी की गौरव गाथा का बयान मिलता है. वैसे भी दुनिया की सबसे खूबसूरत कृति यदि कुछ है तो वो है नारी . पूरी दुनिया के लिए एक नायाब तोहफा है नारी. क्या कभी नारी के बिना सृष्टि की कल्पना संभव थी. अगर नारी न होती तो क्या हम बाकी चीज़ो की कल्पना कर सकते है . नारी के बगैर मनुष्य का अस्तित्व ही क्या होगा . मानवीय करुणा , वेदना , संवेदना, प्रेम और सद्भावना का पाठ सिखाती है नारी . माँ , बहन , बेटी , पत्नी या प्रेमिका , चाहे वो किसी भी रूप में क्यों न हो , नारी के रहने से हमारे जिंदगी के मायने बदल जाते है. प्रेरणा , उम्मीद , सोच, अहसास , ऐसी सभी भावनाओं की संवाहक है नारी .

लेकिन अफ़सोस आज उसी नारी के मान , सम्मान और मर्यादा को तार तार करने वाली घटनाये बार बार हो रही है . अपने देश में ही नहीं वरन विदेशों में भी नारी पर अत्याचार की घटनाये लगातार बढ़ रही है. हालाँकि सरकार ने महिलाओं को सामान दर्ज देने के लिए अनेक योजनाएं शुरू की है जैसे “बेटी बचाओ , बेटी पढ़ाओ “, “सेल्फ़ी विथ डॉटर ” जिससे निश्चित ही जनता की सोच में परिवर्तन आने की पूरी सम्भावना है . पिछले कुछ वर्षों में महिलाओं ने हर क्षेत्र में बड़ी उचाइयां हासिल की है , ग्राम सभा स्तर पर लगभग १२ लाख महिलाओं को स्थानीय नेतृत्व का ऐतिहासिक मौका मिला है , प्रदेश और देश की राजनीती में भी उनकी भागीदारी बढ़ी है . वर्तमान लोकसभा में अबतक की सबसे बड़ी संख्या में महिला जनप्रतिनिधि शामिल है .लेकिन इन सबके बावजूद हम नारी को सामान अधिकार देने की बाते तो बहुत करते है पर शायद पूरे मन और विश्वास से नहीं . हमारे ही समाज के बहुत सारे लोग आज भी नारी को उपभोग की वस्तु ही समझते है और यही सोच नारी की प्रगति में बाधक है . अधिकांश घरों और परिवारों में पुरुष सत्ता ही कायम है , जहाँ घर के किसी भी निर्णय में पुरुषों की ही चलती है , वहां न तो महिलाओं से विचार रखने को कहा जाता है , न ही उन्हें ऐसा कोई अधिकार है . भले ही उस विषय पर वे अच्छी राय दे सकती हो और उससे परिवार का भला हो सकता हो.
आज भी हमारे घरों में बेटियों की शिक्षा को लेकर खुलापन नहीं है. हम सोचते है की लड़कियों के ज्यादा पढ़ लेने पर उनके लिए रिश्ते ढूढ़ने में दिक्कत होगी , कितनी दकियानूसी सोच है . उसी समय हम ये क्यों नहीं सोचते के उन्हें पढ़ा लिखा कर उन्हें स्वावलम्बी बना दे जिससे वे स्वयं के पैरों पर खड़ी हो सके. जिससे न सिर्फ वे स्वयं मजबूत होंगी वरन उनके कारन उनका पूरा परिवार मजबूत होगा . क्योंकि किसी भी परिवार को सुसंगठित और तराशने में नारी की भूमिका महत्वपूर्ण होती है .
हमारे ऐसे ही विचारों के कारण हमारे घरों में लड़कियों को पढ़ाने और उन्हें स्वावलम्बी बनाने के लिए सरकार ने बेटियों को आगे बढाने और उन्हें बेहतर शिक्षा देने की योजना लागू की है जिसकी सफलता हम सब पर ही निर्भर है. वास्तव में नारी के प्रगति और विकास के कोई भी प्रयास तबतक फलीभूत नहीं हो सकते जबतक भारतीय पुरुष सत्ता की सोच में परिवर्तन नहीं आता . सरकार ने भी इसी सोच को बदलने पर जोर दिया है .
यद्यपि हम आशावान है और भारतीय नारी की स्तिथि में परिवर्तन हो भी रहा है पर इसकी गति बहुत ही धीमी है . पुरुष समाज द्वारा इस गति को तीव्र किया जा सकता है . नारी के किसी भी रूप में हम उसके ऋणी है , क्योंकि उसी ने हमें इंसान बनाया , तहजीब सिखाई , सलीके से रहने, सवरने का सलीका सिखाया . तो फिर क्यों न हम नारी को उसके सर्वोच्च स्थान पर स्थापित करने को अपना उद्देश्य बना ले ताकि उसे ये कहने का अवसर न मिले , ” अस्तित्वविहीन मैं, जाग्रत होने पर भी छलि जाती हूँ चहुं ओर , नारी रूप में मेरी स्वीकार्यता मात्र वस्तु सी , न महत्व न जोर “. आइये हम मिलकर अपनी सोच बदले जिससे न केवल समाज की सोच प्रभावित होगी वरन देश की भी सोच बदलेगी .

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