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अपने देश की राजनीति सिर्फ और सिर्फ वोट बैंक पर आधारित है इसका जीता जागता नमूना जवाहर लाल नेहरू विश्वविदयालय में राष्ट्र विरोधी गतिविधियों पर विपक्षी पार्टियों द्वारा की जा रही तुच्छ राजनीती से स्पष्ट है . देश के स्वाभिमान और सम्मान को विश्व पटल पर शर्मिंदा करने वाली इस राष्ट्र विरोधी कृत्य में शामिल छात्रों को बचाने के लिए जिस प्रकार से कांग्रेस के युवराज और लेफ्ट पार्टी के नेता वहां पहुंचकर ऐसे छात्रों पर कार्यवाही करने वालों को ही देशद्रोही बता रहे है ये तो देश के सहनशीलता के इम्तहान की पराकाष्ठा ही है. शिक्षा के परिसर में “पाकिस्तान जिंदाबाद ” के नारे लगाना , अफज़ल गुरु को हीरो बताने वाले नारे लगाने वाले छात्रों से कांग्रेस, जदयू और लेफ्ट पार्टियों की सहानुभूति इनकी निकृष्ट मानसिकता का द्योतक है . अब कहाँ है वे सम्मान लौटाने वाले, असहनशीलता के नाम पर देश छोड़ने वाले . इस बात में कोई दो राय नहीं की हिन्दुस्तान की जगह यदि कोई अन्य देश होता तो ऐसे छात्रों को निश्चय ही ऐसी सजा मिलती जिसके बाद ऐसी हिमाकत करने की किसी की हिम्मत नहीं होती पर हमारा तो धर्मनिरपेक्ष और लोकतान्त्रिक देश है जहाँ किसी को कुछ भी बोलने की छूट है . जिसका फायदा ऐसे राष्ट्रविरोधी तत्व उठा रहे है . हद तो इस बात की है की जे एन यू में पढ़ने वाले उमर खालिद, कन्हैया और उसके साथी देश की जनता के पैसे से पढ़ते है और पाकिस्तान जिंदाबाद और अफजल गुरु जिंदाबाद के नारे लगाते है और तो और उमर खालिद ने एक टी वी चैनल पर अफजल को फांसी दिए जाने पर भारत के संविधान और न्याय व्यवस्था को ही गलत बताते हुए चुनौती दे दी . ऐसे देश द्रोही की गिरफ़्तारी का विरोध करने के लिए देश के तथाकथित नेता पहुँच गए , इन्हे देश की करोङो जनता के राष्ट्र प्रेम की भावना का जरा भी ध्यान नहीं रहा जिनके दम पर ये नेता बने है , न ही इन्हे ख्याल आया उन लाखों जवानो का जो इन जैसे लोगो की सुरक्षा के लिए देश की सीमाओं पर कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी सीना तान कर खड़े रहते है . वहीँ दूसरी तरफ हाल में ही पाकिस्तान में एक खेल प्रशंसक को सिर्फ इसलिए सलाखों के पीछे जाना पड़ा की उसने भारत का तिरंगा लहरा दिया . कितना फर्क है हमारे और उनके देश में , हमारे कानून में , हमारी सोच में . कभी कभी अफ़सोस होता है हमारे देश के नेताओं की सोच पर की ऐसे मौकों पर जब राष्ट्र विरोधी ताकतों के खिलाफ एकजुट होकर ऐसी घटनाओ का भर्त्सना करनी चाहिए तो ऐसे वक्त में हमारे नेता निकृष्ट सियासत में जुटे हुए है .
लेकिन आश्चर्य है की इन्ही नेताओं को मालदा और पूर्णिया में कुछ दिनों पूर्व घटी घटना न तो दिखी और न ही घटना से पीड़ित लोगों के दुःख से उनकी कोई सहानुभूति हुई । आश्चर्य है की इस घटना पर कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियों के किसी भी बड़े नेता का बयान सुनाई नहीं पड़ा। ज्ञातव्य है कि कुछ महीनो पहले एक तथाकथित हिन्दू नेता कमलेश तिवारी के इस्लाम के पैगम्बर पर अमर्यादित टिप्पणी को लेकर विवाद उठा था तदोपरांत उत्तर प्रदेश पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर रासुका भी लगाया और वो सलाखों के पीछे भी है , उस पर जो कार्यवाही होनी है वो न्यायलय में चल रही है , पर ये बात समझ से परे है लगभग एक महीने बाद मालदा में लाखों की संख्या में पहुंचकर हिंसक प्रदर्शन करना , घरों को लूटना , पुलिस थानो पर धावा बोलना , दर्जनो वाहनो को आग के हवाले करना किस सहनशीलता का परिचायक है। हैरत है कि ऐसी हिंसात्मक घटनाओ पर भी पार्टिया और नेता मौन साधे हुए थे । शायद तब उन्हें असहिष्णु और असहनशीलता नहीं दिख रही थी । देश के कथित सेक्युलर लोगों को समाज तोड़ने और आक्रामक सांप्रदायिक हिंसा की ये घटनाये नहीं दिखी। वास्तव में ऐसा लगता है की यहाँ के नेताओं और पार्टियों के दोहरे मानदंड है और कुल मिलाकर वे सिर्फ और सिर्फ वोट की राजनीती ही करते है। इतना ही नहीं मालदा और पूर्णिया की घटनाओ को अपने को सबसे तेज, स्वतंत्र और निष्पक्ष कहने वाले टीवी और प्रिंट मीडिया ने भी प्रमुखता नहीं दी ,यहाँ तक की कुछ चैनलों ने तो इसे कवर ही नहीं किया। ये कैसा दोहरा मापदंड है उनका , जहाँ अल्पसंख्यकों द्वारा बहुसंख्यको पर हुए अत्याचार का कोई मोल नहीं है। लेकिन कुछ भी हो जे एन यू की घटना और उस पर हो रही सियासत देश की करोङो जनता बर्दाश्त करने के मूड में नहीं है वास्तव में इससे उन लाखों सेना के जवानो की भावनाओ को भी ठेस पहुंची है जो दिन रात देश की सीमाओं पर देश की रक्षा के लिए अपने जान की परवाह नहीं करते . इन राष्ट्र विरोधियों के प्रति कठोर से कठोर कार्यवाही करना समय की मांग है .
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