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अपने देश की राजनीति कभी कभी आम जनता के समझ में नहीं आती है। कुछ महीनो पहले तक देश में असहनशीलता को लेकर शोर मचाने वाले नेता , अभिनेता और विभिन्न राजनैतिक दल अब मौन है। शायद उन्हें पश्चिम बंगाल के मालदा और पूर्णिया में घटी घटना न तो दिख रही है और न ही घटना से पीड़ित लोगों के दुःख से उनकी कोई सहानुभूति है। आश्चर्य है की कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियों के किसी भी बड़े नेता का बयान सुनाई नहीं पड़ा। ज्ञातव्य है कि कुछ महीनो पहले एक तथाकथित हिन्दू नेता कमलेश तिवारी के इस्लाम के पैगम्बर पर अमर्यादित टिप्पणी को लेकर विवाद उठा था तदोपरांत उत्तर प्रदेश पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर रासुका भी लगाया और वो सलाखों के पीछे भी है , उस पर जो कार्यवाही होनी है वो न्यायलय में चल रही है , पर ये बात समझ से परे है लगभग एक महीने बाद मालदा में लाखों की संख्या में पहुंचकर हिंसक प्रदर्शन करना , घरों को लूटना , पुलिस थानो पर धावा बोलना , दर्जनो वाहनो को आग के हवाले करना किस सहनशीलता का परिचायक है। मालदा का प्रदर्शन आरोपी के जेल जाने के एक माह बाद हुआ। यद्यपि इस टिप्पणी का विरोध देश के अन्य स्थानो पर भी हुआ जिसमे मुरादाबाद , बेंगलुरु , देवबंद , मुजफ्फरनगर , बरेली जैसे शहरों में व्यापक प्रदर्शन हुए थे। पिछले दिन पूर्णिया में ऐसी ही घटना की पुनरावृत्त हुई। ये अराजकता की पराकाष्ठा ही कही जाएगी। हैरत है कि ऐसी हिंसात्मक घटनाओ पर भी पार्टिया और नेता मौन साधे हुए है। शायद अब उन्हें असहिष्णु और असहनशीलता नहीं दिख रही है। देश के कथित सेक्युलर लोगों को समाज तोड़ने और आक्रामक सांप्रदायिक हिंसा की ये घटनाये नहीं दिखी। वास्तव में ऐसा लगता है की यहाँ के नेताओं और पार्टियों के दोहरे मानदंड है और कुल मिलाकर वे सिर्फ और सिर्फ वोट की राजनीती ही करते है। इतना ही नहीं मालदा और पूर्णिया की घटनाओ को अपने को सबसे तेज, स्वतंत्र और निष्पक्ष कहने वाले टीवी और प्रिंट मीडिया ने भी प्रमुखता नहीं दी ,यहाँ तक की कुछ चैनलों ने तो इसे कवर ही नहीं किया। ये कैसा दोहरा मापदंड उनका , जहाँ अल्पसंख्यकों द्वारा बहुसंख्यको पर हुए अत्याचार का कोई मोल नहीं है।
जरा विचार कीजिये कि स्तिथि इसके विपरीत होती तो क्या होता ? यही नेता और अभिनेता सामाजिक समरसता, एकता और सहन शीलता का झंडा लेकर सड़क से संसद तक मार्च कर रहे होते। ये समाचार रात दिन मीडिया की सुर्ख़ियों में होते। इस बात में कोई दो राय नहीं हो सकती की हमें किसी की भी धार्मिक भावनाओ को आहत करने का कोई हक़ नहीं है ,ये कोई एक पक्षीय भावनाए नहीं होती , सबकी अपनी धार्मिक भावनाए होती है , उनकी अपनी प्रतिबध्यताएँ होती है , इनका आदर करना प्रत्येक भारतीय का कर्तव्य और जिम्मेदारी है। पर देश के जिम्मेदार नेताओं , अभिनेताओं और पार्टियों को भी अपनी जिम्मेदारी पूरी सतर्कता से निभानी चाहिए क्योंकि कहीं न कहीं वे समाज , वर्ग का प्रतिनिधित्व करते है।
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