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नेताओं द्वारा संयमित भाषा का प्रयोग होना चाहिए

NAV VICHAR
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पिछले कुछ महीनो में अपने देश में विवादित बयानों और अपशब्दों की बयार सी चली है जिसमे नेता , अभिनेता , साहित्यकार सभी सम्मलित रहे है . चाहे वो असहिश्रुड़ता की बात रही हो या बिहार का चुनावी दंगल , या फिर नेशनल हेराल्ड जैसे मुद्दों की , देश की राजनितिक पार्टियों के नेताओं ने अमर्यादित शब्दों और जुमलों की सभी सीमाएं तोड़ दी . देश में चाहे चुनावी माहौल हो या कोई और समय , राजनैतिक दलों और नेताओं के बीच हमेशा ही आरोप प्रत्यारोप का दौर चलता रहता है । अब ये तो जैसे अपने देश की परंपरा ही हो गयी है। इन दलोँ के नेताओं की जुबान तो जैसे फिसलती ही रहती है , वे कब , क्या बोल देंगे , कोई भरोसा नहीं होता। बिना सोचे विचार की उनकी बात या स्टेटमेंट का देश की जनता पर क्या असर होगा। इतना ही नहीं अपने देश में कुछ नेताओं को तो विवादास्पद बयान देने की आदत सी बन गयी है।
शायद ये उनकी सुर्ख़ियों में रहने की चाहत की वजह से भी हो। अभी पिछले दिनों केंद्र सरकार के मंत्री वी के सिंह द्वारा दिए गए बयां की चर्चा थमी नहीं थी कि दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल जी ने देश के प्रधान मंत्री के गरिमामयी पद पर बैठे व्यक्ति के लिए जिन शब्दों का प्रयोग किया वो किसी भी देश के लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं माना जा सकता . इतना ही नहीं कुछ दिनों पहले अभिनेता शाहरुख़ खान और आमिर खान ने देश में धर्म के नाम पर जिस तरह का बयां दिया वो किसी भी सच्चे राष्ट्र भक्त का दिल तोड़ने वाला था . ये बयान भी ऐसे समय में आया जब प्रधान मंत्री ने सभी धर्मो को सयम बरतने और दूसरे धर्मो का सम्मान करने की सलाह दी थी । अब ये इन जैसो का बड़बोलापन ही कहा जायेगा जो इनकी रीति और नीति सबसे जुदा है और समाज और देश जोड़ने की बजाय तोड़ने वाली है।
जबकि अन्य देशो में ऐसा नहीं है। वहां के नेता मितभाषी होते है और वहां का विपक्ष देश के विकास एवं प्रगति में रचनात्मक भूमिका निभाता है। यहाँ तक की वे सरकार के अच्छे कार्यो और योजनाओं की प्रसंशा भी करते है। हमारे राजनेता ये क्यों नहीं समझ पाते की जितनी ऊर्जा वे एक दूसरे पर दोषारोपण करने में , बुराई करने में खर्च करते है उतना अगर वे समस्याओं के सकारात्मक परिणाम निकालने में लगाते तो देश के विकास को सही गति मिलती। इतना ही नहीं वे आरोप के लिए जिन शब्दों का प्रयोग करते हैं , वे कदापि मर्यादित नहीं होते। कुछ नेता तो कभी कभी पद कि गरिमा और मर्यादा को भी तार तार कर देते है। आये दिन अखबारों एवं टी वी चैनलों पर ऐसे विवादित बयानो से हम सब को दो चार होना पड़ता है।
सभी दलों को इस बात पर गम्भीरता से चिंतन करने कि आवश्यकता है . इससे एक तरफ जहाँ देश का सामाजिक, राजनैतिक वातावरण दूषित हो रहा है , वहीँ दूसरी तरफ विदेशों में अपने देश की छवि भी धूमिल हो रही है। इस विषय में दलों को शीघ्र पहल करनी चाहिए। इस दिशा में मीडिया भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है , उसे ऐसे बयानों और ऐसे नेताओं की बातों को इग्नोर करना चाहिए जिससे समाज और राष्ट्र का वातावरण दूषित होता है।

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