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वर्तमान में देश एक प्रकार से विरोध के दौर से गुजर रहा है . कहीं भी सकारात्मकता नहीं दिख रही है . अब तो ऐसा लगने लगा है की अपने देश की राजनीति का एक महत्वपूर्ण पहलू बन गया है “विरोध” . सरकार का काम अच्छा हो या बुरा ,इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता। सत्ताधारी पार्टी की योजना जनहित में हो , उनकी सोच सकारात्मक हो , इससे विपक्षी पार्टी को क्या , उसे तो उसका विरोध ही करना है। ये अपने भारत की बहुत बड़ी कमजोरी रही है। संसद का sheet सत्र किस तरह से अवरोधों का शिकार हुआ, ये किसी से छिपा नहीं है .पिछले कुछ महीनो में सरकार ने निश्चित रूप से देश के कल्याण के लिए , जनता के हित में अनेक कार्यक्रमों और योजनाओं को लागू करने की घोषणा की। लेकिन कांग्रेस सहित विपक्षी पार्टियों ने इसका विरोध ही किया है . कुछ विषयों पर तो कांग्रेस ने अपने एक दो ऐसे नेताओं को हाशिये पर खड़ा कर दिया जिन्होंने ने उनका समर्थन करने की कोशिश की। ये विपक्षी पार्टी की हताशा और निराशा को ही दर्शाता है। ये कांग्रेस पार्टी की संकीर्ण सोच और मानसिकता ही है कि वह एक जिम्मेदार विपक्ष की भूमिका निभाने में फेल ही रही है । पार्टी ने अपनी कट्टर विरोधी सोच के साथ ये भी प्रकट कर दिया की उनकी पार्टी में लोकतान्त्रिक विचार वाले लोगों की बहुत कमी है।
नेशनल हेराल्ड को लेकर कांग्रेस की अराजकता , समझ से परे है की केवल विरोध करने के लिए विरोध करना . इसके पीछे तो कारण बस यही लगा की वे देश की जनता के बीच अपनी उपस्तिथि दर्ज करना चाहते थे . इतना ही नहीं कुछ विपक्षी नेताओं ने बिल की अच्छाइयों और बुराइयों को बिना भली भांति जाने समझे अनर्गल बयां दे दे कर , जनता के मन में भ्रम भी पैदा कर दिया .
अब तो ऐसा लगता है की इन पार्टियों के पास कोई मजबूत मुद्दा ही नहीं है जिस पर ये सत्ताधारी पार्टी और सरकार का विरोध कर सके . तभी तो संसद के इस सत्र में भी राजस्थान और मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्रियों के इस्तीफों जैसे निष्क्रिय मुद्दों को उठाकर संसद का समय और धन दोनों को नुक्सान पहुचाया गया. वास्तव में किसी भी देश में विपक्ष की सकारात्मक भूमिका देश की प्रगति और विकास के लिए सरकार द्वारा किये जा रहे प्रयासों को गति प्रदान करता है , उसे जनता के लिए और भी बेहतर बनाता है , पर अपने देश में विपक्षी पार्टियों में ऐसे रचनात्मक और सकारात्मक सोच का सर्वथा अभाव रहा है . पर उन्हें इस दिशा में गंभीरता से विचार करना चाहिए .
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