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बिहार चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की हार से जहाँ एक तरफ पार्टी के अंदर का घमासान सतह पर उभर रहा है वहीँ दूसरी तरफ ऐसा भी प्रतीत होने लगा है कि बिहार के परिप्रेक्ष्य में ये सही सिद्ध हुआ कि वहां भाजपा का कोई प्रादेशिक चेहरा ऐसा दमदार नहीं था जो वहां कि जनता का भरोसा और विश्वास जीत सके दूसरी बात वहां कि जनता को इस बात से मतलब नहीं कि देश में जीडीपी ग्रोथ क्या , विदेशों में भारत कि छवि सुधर रही है या नहीं, देश में कानून व्यवस्था कि क्या स्तिथि है , भ्रष्टाचार पर रोक लगी है या नहीं , वहां तो जातीय समीकरण ऐसा है कि वहां के लोगो को देश के विकास के मुद्दे , योजनाये , रोजगार, उद्योगों के विकास की बातें , प्रभावित नहीं करते . वहां के प्रादेशिक स्तर की समस्याएं , जाति और धर्म पर आधारित जनता कि सोच ही चुनाव में जीत हार का निर्धारण करती है या यूँ कहें की वहां की जनता को बिहार के विकास से, भ्रष्टाचार और लूट से शायद उतना मतलब नहीं . बिहार की जनता को शायद आदत बन चुकी है भीड़ भरी ट्रेनों की छत पर बैठ कर बिहार से बाहर जाकर नौकरी और मजदूरी करने की , वहां के निवासियों की बड़ी संख्या दुसरे प्रदेशों में कमाई करती है . क्योंकि वहां रोजी रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने की दिशा में किसी ने कभी सकारात्मक प्रयास किया ही नहीं . वास्तविक रूप में वहां के छात्रों को नक़ल करके परीक्षा पास करने की आदत है, जो अच्छे छात्र है वे बिहार में रुकते कहाँ है . पिछली सरकारों ने शिक्षा के क्षेत्र में बड़े बड़े सुधारों कि बात करती रही है पर हुआ कुछ नहीं है . अखबारों और सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर बिहार के स्कूलों में नक़ल की तस्वीरें वहां के स्कूलों की दुर्दशा बयान करती है . इस बार बिहार चुनाव में उत्तर प्रदेश की तरह कुछ पार्टियों ने छात्रों को लैपटॉप , साइकिल , स्कूटर बाटने का वायदा किया है पर उसका हश्र भी उत्तर प्रदेश जैसा ही होना तय है . बिहार में नितीश कुमार और उससे भी कहीं ज्यादा लालू यादव इस अप्रत्याशित जीत से आत्ममुग्ध न हो जाए इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता . इस बात में भी संदेह लग रहा है कि नितीश कुमार की आगे की राह बहुत आसान होगी क्योंकि लालू कि सीटें नितीश से ज्यादा है और इस सच्चाई का लाभ लालू यादव समय समय पर अवश्य ही लेना चाहेंगे . मुख्य मंत्री बनने पर नितीश कुमार के दैनिक कार्यकलापों में लालू की दखलंदाजी बार बार होगी ऐसी सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता . इतना ही नहीं चुनाव में सफलता से अतिउत्साहित लालू यादव की महत्वकांछा और प्रदेश से बाहर निकल कर राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा और प्रधान मंत्री मोदी के विरुद्ध नेतृत्व करने की ललक नितीश और लालू के आपसी सम्बन्ध के साथ ही महागठबंधन के अन्य दलों को भी रास नहीं आएगी . इसलिए नितीश कुमार को बिहार में अच्छा शासन देने की चुनौती के साथ ही साथ लालू यादव और उनके नेताओं को भी अनुशासित रखने की दोहरी चुनौती होगी . वे इस भूमिका में कितने सफल रहेंगे ये देखना काफी दिलचस्प होगा .
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