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दुनिया के अलग-अलग देशो में लोगों के रहन सहन, बातचीत और तौर-तरीकों में कई अंतर होते हैं। इसलिए एक देश के लोग खुद को दूसरे के लोगों से अलग समझते हैं। लेकिन दुनिया भर में हर देश के बच्चे एक जैसे होते हैं-मासूम साफ दिल, भोले-भाले, प्यारे और जिज्ञासु। बच्चे जल्दी दोस्ती कर लेते हैं और सब को अपना बना लेते हैं। सोचिए अगर बच्चे कभी बड़े ही ना हों, तो दुनिया में युद्ध और अशान्ति की स्थित ही ना बने। बात विश्व की हो, देश की हो या हमारे घर परिवार की यदि हम बच्चों की तरह रहे तो शायद कभी हमारे परिवारों का विभाजन हो ही न . आपस की जलन , भेद भाव , उंच नीच ये सब भावनाए आये ही न .
यह तो सम्भव नहीं है कि बच्चे कभी बड़े ही ना हों। पर बच्चों की मासूमियत और उनके निष्छल मन में यदि बचपन से ही दोस्ती के बीज डाले गए हों, तो जब ये बच्चे बड़े हो जायेंगे तब भी यह दोस्ती उनके मन में जिन्दा रहेगी। अमेरिका के भूतपूर्व राष्ट्रपति ड्वेज डी एजनहावर के मन में एक ऐसा ही ख्याल आया। उन्होंने अपने देश के बच्चों को दोस्ती के संदेश के साथ हर साल अन्य देशो में भेजने की योजना बनाई। इस बात पर विचार विमर्ष करने के लिए उन्होंने सन 1956 में व्हाइट हाउस में एक बैठक बुलाई। इस बैठक में यह फैसला लिया गया कि हर साल अमेरिका के बच्चे अन्य देशो में राष्ट्रपति के दूत के रूप में यात्रा करेगें। इन बच्चों को स्टूडेंट एम्बेसेडर का नाम दिया गया। सन 1963 से अमेरिका के बच्चों ने राष्ट्रपति के दूत के रूप विदेश यात्रा करना प्रारम्भ की और यह सिलसिला आज तक जारी है।
हमारे देश में प्रत्येक वर्ष पंडित नेहरू के जन्म दिवस १४ नवम्बर को “बाल दिवस ” के रूप में मनाया जाता है . ऐसे अवसर पर यदि बच्चों के हित को ध्यान में रखते हुए अगर ऐसा ही कुछ अपने देश में भी शुरू हो तो कितना ही अच्छा हो , यह पहल अच्छी हो सकती है . ऐसे कार्यक्रमों में भाग लेने से जहाँ उनमे वैचारिक परिवर्तन आएगा वहीँ उनकी सकारात्मक सोच को विस्तार मिलेगा . इससे उनमे उस देश के प्रति और अधिक जानकारियां प्राप्त करने की इच्छा पैदा होगी और वे अपनी यात्रा के दौरान उन चीजों , स्थानो के बारे में जानने को और भी उत्सुक होंगे . उन देशो के इतिहास, वहां की संस्कृति, भौगोलिक परिस्थितियों के बारे में इन बच्चों का बहुत सा अध्ययन करना उनके लिए रोमांचकारी होगा ।
ऐसी शुरुआत इन बच्चों को वहां केवल घूमने-फिरने और मौज मस्ती के लिए ही नहीं होगी वरन नन्हें शांतिदूतों से यह अपेक्षा भी होगी की वे वहां से कुछ सीख कर और विदेशी धरती पर कुछ लोगों के मन में दोस्ती के बीज बोकर आएंगे .
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