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बिहार में अवसरवादी गठबंधन

NAV VICHAR
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बिहार में विधान सभा चुनाओं के पहले लगातार बदलते हालात में जदयू और लालू की पार्टी राजद का किसी भी प्रकार से अगले पांच वर्षों के लिए सत्ता पाने की ललक साफ़ झलक रही है . समाजवादी पार्टी द्वारा बिहार के अवसरवादी गठबंधन से अलग होने की घोषणा के बाद वहां की राजनितिक परिस्तिथियाँ और भी बदल गयी है उस पर से सपा की तीसरे मोर्चे की सम्भावना तलाश करने की घोषणा निश्चित ही नितीश और लालू को बेचैन कर देने वाली है क्योंकि राष्ट्रवादी कांग्रेस पहले ही उनका साथ छोड़ चुकी है . वैसे देखा जाय तो इस गठबंधन में शुरुआत से ही अस्थिरता झलक रही थी . क्योंकि जदयू पार्टी का राजद , सपा , कांग्रेस , राकांपा और अन्य पार्टियों के साथ गठबंधन निहायत ही अवसरवादी और अलग अलग विचारधारा वाला था । विधान सभा चुनाव में एक दूसरे की कट्टर विरोधी पार्टियों का एक साथ आ जाना, सत्ता लोलुपता और अवसरवादिता से अधिक और कुछ नहीं हो सकता।
आखिरकार सीट बंटवारे को लेकर सपा और रांकपा का गठबंधन से बहिष्कार करना इसी का तो प्रतीक है . सबसे बड़ी बात की इसमें कांग्रेस और राजद जैसी वे पार्टियां शामिल है जिन्होंने बिहार के पिछले विधान सभा चुनाव में नितीश पर कीचड उछालने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी . फिलवक्त कांग्रेस तो इस प्रयास में गठबंधन का हिस्सा बनी है की उसे अपनी खोई जमीन तलाशनी है और तो और इस गठबंधन की मजबूरी ये है की इनमे शामिल कोई भी पार्टी अकेले दम पर बिहार की सत्ता पाने लायक नहीं है. गठबंधन में जनता परिवार के ६ पार्टियों को शामिल होना था पर शुरू में ही वे किनारे हो गए . अब तो गठबंधन का मुखिया जिन्हे बनाने का प्रयास किया गया था उन्होंने ने भी किनारा कस लिया . मुलायम सिंह ने लालू से अपनी रिश्तेदारी निभाने की बजाय अपने पार्टी के हितो को अधिक महत्वपूर्ण माना . चुनाव के ठीक पहले हुई इस घटना से भाजपा को फायदा हो सकता है , ऐसा नहीं है की बिहार में सपा का बहुत मजबूत जनाधार है लेकिन गठबंधन का टूटना वहां की जनता के लिए एक सन्देश हो सकता है की जो लोग चुनाव के पहले एकजुट नहीं हो सके उनसे चुनाव जीतने के बाद क्या उम्मीदें की जा सकती है . भाजपा को इसका भी लाभ मिल सकता है की जिन क्षेत्रों में सपा अपने उम्मीदवार खड़े करेगी वहां जातिगत वोट बटेंगे जिनका सीधा लाभ भाजपा और उसके साथ की पार्टियों को मिलेगा . सीट बटवारे में भी जदयू ने काफी सोच विचार कर फैसला लिया है . कांग्रेस की हालत पहले ही पतली है उसके हिस्से में मिली ४० सीटों का हश्र क्या होगा ये तो समय ही बताएगा लेकिन ये तय है की इस निहायत ही अवसरवादी गठबंधन का भविष्य बिहार की जनता के लिए शुभ संकेत लेकर नहीं आने वाली .

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