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अपने देश की राजनीती में इन दिनों विवादित बयान देने वालों की जैसे बाढ़ सी आ गयी है। एक विवाद थमते ही दूसरा पैदा हो जाता है। लगता है जैसे विवादित और अमर्यादित बयानों की ये श्रंखला टूटेगी ही नहीं। यूँ तो अपने देश में राजनैतिक दलों और नेताओं के बीच हमेशा ही आरोप प्रत्यारोप का दौर चलता रहता है । यद्यपि स्वस्थ राजनितिक परंपरा के लिए सकारात्मक और रचनात्मक आलोचना अच्छी होती है पर इस बहाने ओछी और निकृष्ट भाषा का प्रयोग कर सस्ती लोकप्रियता बटोरना अच्छा नहीं होता।
देश में चाहे चुनावी माहौल हो या कोई और समय , देश की परंपरा ही हो गयी है। विभिन्न दलोँ के नेताओं की जुबान तो जैसे फिसलती ही रहती है , वे कब , क्या बोल देंगे , कोई भरोसा नहीं होता। बिना सोचे विचार की उनकी बात या स्टेटमेंट का देश की जनता पर क्या असर होगा। इतना ही नहीं अपने देश में कुछ नेताओं को तो विवादास्पद बयान देने की आदत सी बन गयी है।
शायद ये उनकी सुर्ख़ियों में रहने की चाहत की वजह से भी हो। अभी पिछले दिनों समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने महिलाओं पर होने वाले बलात्कार पर निहायत ही घटिया और शर्मशार करने वाला बयां दे डाला था , पूरे देश में इसके विरोध की लहर अभी थमी भी नहीं थी की उन्ही के पार्टी के एक मंत्री महोदय शाकिर जी ने पूर्वांचल में अपने अधिकारों के लिए लड़ रही महिलाओं के धरने के दौरान पुलिस द्वारा लाठी चार्ज करने पर एक असम्मानजनक और अमर्यादित बयान देकर आग में घी डालने का काम कर दिया . अपने देश में राजनितिक पार्टियों के नेता सिर्फ आरोप प्रत्यारोप में व्यस्त रहते है जबकि अन्य देशो में ऐसा नहीं है। वहां के नेता मितभाषी होते है और वहां का विपक्ष देश के विकास एवं प्रगति में रचनात्मक भूमिका निभाता है। यहाँ तक की वे सरकार के अच्छे कार्यो और योजनाओं की प्रसंशा भी करते है। हमारे राजनेता ये क्यों नहीं समझ पाते की जितनी ऊर्जा वे एक दूसरे पर दोषारोपण करने में , बुराई करने में खर्च करते है उतना अगर वे समस्याओं के सकारात्मक परिणाम निकालने में लगाते तो देश के विकास को सही गति मिलती। इतना ही नहीं वे आरोप के लिए जिन शब्दों का प्रयोग करते हैं , वे कदापि मर्यादित नहीं होते। कुछ नेता तो कभी कभी पद कि गरिमा और मर्यादा को भी तार तार कर देते है। आये दिन अखबारों एवं टी वी चैनलों पर ऐसे विवादित बयानो से हम सब को दो चार होना पड़ता है.
अब समय आ गया है की सभी दलों को इस बात पर गम्भीरता से चिंतन करने कि आवश्यकता है . उनके नेताओं को संयमित और सभ्य भाषा का प्रयोग करना चाहिए इससे एक तरफ जहाँ देश का सामाजिक, राजनैतिक वातावरण दूषित होने से बचेगा , वहीँ दूसरी तरफ विदेशों में अपने देश की छवि अच्छी होगी । इस विषय में दलों को शीघ्र पहल करनी चाहिए। इस दिशा में मीडिया भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है , उसे ऐसे बयानों और ऐसे नेताओं की बातों को इग्नोर करना चाहिए जिससे समाज और राष्ट्र का वातावरण दूषित होता है।
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