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सरकारी स्कूलों का सच आखिर सामने आ ही गया तभी तो उच्च न्यायालय ने सरकारी कर्मचारियों , अधिकारीयों , निर्वाचित जन प्रतिनिधियों के बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाने की कवायद की है . दरअसल माननीय उच्च न्यायलय का यह आदेश उस कडुवे सच का प्रतिबिम्ब है जहाँ सरकारी स्कूलों की दुर्दशा और दुर्गति नज़र आती है . इस बात की सच्चाई से इंकार नहीं किया जा सकता की सरकारी स्कूलों में मूल भूत सुविधाये तो न के बराबर है और तो और यहाँ के कमरे , दीवारे , पेय जल की व्यवस्था सभी शून्य है . इन विद्यालयों में शिक्षा का स्तर भी लगातार गिरता ही जा रहा है . यही कारण है कि आज गरीब से गरीब आदमी भी अपने बच्चों को इन सरकारी स्कूलों कि अपेक्षा छोटे मोटे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाने में ज्यादा रूचि लेता है . प्राइवेट स्कूलों के प्रति आम जनता कि बढ़ती रूचि और सरकारी स्कूलों के प्रति बेरुखी ही शायद वो कारण है कि माननीय उच्च न्यायालय ने सरकारी स्कूलों का स्तर सुधारने , शिक्षा का बेहतर वातावरण पैदा करने हेतु ऐसा आदेश पारित किया . सरकारी स्कूलों में बुनियादी कमी के साथ साथ शिक्षा देने के तरीकों में भी कमी है . तीस चालीस साल पहले इन्ही स्कूलों में अच्छी शिक्षा पद्धति थी , शिक्षक भी बेहतर , साफ़ सुथरी शिक्षा देना ही अपना धर्म समझते थे . इन्ही स्कूलों में पढ़ कर अनेक महान शिक्षक , लेखक , समाज शास्त्री और प्रशासक जन्मे है जिन्होंने समाज और देश को आगे ले जाने का गंभीर कार्य किया . लेकिन आज ऐसा नहीं है इसके पीछे सबसे बड़ा दोष शिक्षा के व्यवसायकरण का है . शिक्षा को एक बिज़नेस के रूप में देखा और समझा जाने लगा है और कही कहीं तो इसे नोट छापने की मशीन के तौर पर इस्तेमाल किया जाने लगा . नए नए शिक्षा माफिया पैदा हो गए जिन्होंने इस पर अपनी धाक जमा ली और ऐसे ही कारणों से शिक्षा अपने उद्देश्य से भटक गयी . ऐसा नहीं है कि इन प्राइवेट स्कूलों में शिक्षको को पैसा बहुत मिलता हो , सरकारी स्कूलों के शिक्षकों की सैलरी की अपेक्षा इनका वेतन आधे से भी कम होता है लेकिन वे इस बात का लाभ उठाते है की सरकारी स्कूलों में शिक्षक अपनी जिम्मेदारी भली भांति नहीं निभाते , वे छात्रों को प्राइवेट ट्यूशन देने में ज्यादा रूचि लेते है . अब तो स्तिथि ये है की सरकारी स्कूलों के शिक्षक स्वयं अपने बच्चों को भी इन स्कूलों में नहीं पढ़ाते . यदि माननीय न्यायलय के इस आदेश का पालन होता है तो निश्चय ही इस स्तिथि में परिवर्तन आएगा वो भी बेहतर क्योंकि सरकारी स्कूलों का स्तर ठीक करने के जिम्मेदार लोगों के बच्चें जब इन स्कूलों में पढ़ेंगे तो उन्हें मजबूर होकर इन स्कूलों की सुविधाओं को ठीक करना होगा , शिक्षा का बढ़िया वातावरण तैयार करना होगा , यहाँ की आधारभूत जरूरते भी पूरी होंगी . वे अपने बच्चों के भविष्य के लिए स्वयं भी सुधर जायेंगे . माननीय उच्च न्यायालय का आदेश सरकारी स्कूलों की गिरती साख को बेहतर बनाने में एक मील का पत्थर सिद्ध होगा लेकिन ये सब तब संभव होगा जब मजबूत इच्छाशक्ति के साथ कार्य किया जायेगा , देश के भविष्य को अकल्पनीय मजबूती देने के लिए शायद हमें ऐसी ही उम्मीद करनी भी चाहिए.
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