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अगर अपने देश में शिक्षा के स्तर की बात करें तो उसमे बिहार और उत्तरप्रदेश सबसे नीचे आता है . कुछ महीनो पहले बिहार में परीक्षा के दौरान धुँआ धार नक़ल कराने की तश्वीरें मीडिया और सोशल मीडिया पर खूब वाइरल हुई थी . इससे शिक्षा से जुड़े उन लोगों और शिक्षा मंत्रालयों को बहुत बड़ा झटका लगा था जो परीक्षा की सुचिता और अनुशासन बनाये रखने के लिए जिम्मेदार थे और जो इसका ढिंढोरा पीटते थे . कमोबेश यही हाल उत्तर प्रदेश का भी है. यू पी बोर्ड के छात्रों के नंबर आई सी यस सी और सी बी यस सी के बराबर करने के लिए तो बोर्ड ने सुरधारवादी कदम तो उठा लिए और परीक्षा का पैटर्न बदल कर लेकिन फिर भी समानता न ला पाने के कारण यू पी बोर्ड के छात्र स्नातक कक्षाओं में एडमिशन पाने में असफल रहने लगे फलतः यू पी बोर्ड को पुनः विचार करने पर मजबूर होना पड़ा . अब बोर्ड ने निर्णय लिया है की आई सी यस सी और सी बी यस सी की तरह अन्तर में केवल एक साल की पढाई की परीक्षा लेगा . इसका मतलब अब छात्रों को अन्तर परीक्षा के लिए केवल बारह्वी का कोर्से तैयार करना होगा . हो सकता है इस निर्णय से छात्रों को लाभ मिले और निश्चित ही मिलेगा . लेकिन उनके करियर के हिसाब से क्या ये ठीक होगा . लगभग एक ये डेढ़ दशक पहले यू पी बोर्ड की पढ़ाई का स्तर आज जैसा नहीं था , उसका भी अपना एक स्टैण्डर्ड था. और उसकी सुचिता और गंभीरता भी प्रचलित थी लेकिन पिछले कुछ वर्षो में अनुशासन हीनता और नक़ल का धब्बा बोर्ड पर लगने के कारण इसकी विश्वसनीयता प्रभावित हुई है और कुछ समय तो इसकी परीक्षाओं का मखौल भी खूब उड़ा. मीडिया में नक़ल करते छात्रों की तस्वीरें छपने लगी . कुछ वर्षों पहले यू पी बोर्ड में ७५ फीसद नंबर पाना सर्वश्रेष्ठ माना जाता था लेकिन वाही दुसरे बोर्ड में ९५ फीसद अंक पाना सर्वश्रेष्ठ माना जाता है और इसके बाद भी स्कूल के शिक्षक और अभिभावक इससे ज्यादा की उम्मीद करते थे. यू पी बोर्ड में एक तो नक़ल और ऊपर से अंक भी कम , इससे बोर्ड की विश्वसनीयता एक बार फिर कठघरे में खड़ी दिख रही है . दुसरे बोर्ड्स की बराबरी करने की जुगत में यू पी बोर्ड के प्रशासक ऐसे निर्णय लेते जा रहे है जो शायद बच्चों के हित में तो है पर बोर्ड के पढाई के स्तर पर प्रश्नचिन्ह लगा रहे है और उसकी अपनी मौलिकता भी समाप्त होती जा रही है . लेकिन इन सब के बीच कुछ ऐसे अनुत्तरित सवाल भी है जिनका उत्तर तलाशने की सख्त जरुरत महसूस हो रही है , क्या ऐसे निर्णय छात्रों में कोचिंग के प्रति आकर्षण रोकने में सफल होंगे , क्या इससे शिक्षकों में टूयशन देने की बाध्यता पर ब्रेक लगेगा , क्या इससे बोर्ड पर नक़ल कराने और अनुशासन हीनता जैसे लगने वाले धब्बे छूट जायेंगे . इन सवालों के समाधान ढूंढें बिना यू पी बोर्ड के सर्वश्रेष्ठ स्थान पर स्थापित होने में संदेह है .
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