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किसी भी लोकतान्त्रिक देश के आर्थिक , सामाजिक या राजनितिक परिवर्तन में उस देश के चौथे स्तम्भ यानि मीडिया की भूमिका अति महत्वपूर्ण होती है। यदि हम गौर करें तो देश के स्वंतंत्रता के आंदोलन में भी मीडिया की भूमिका रही है। उस समय के अनेक नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ता , साहित्यकारों ने पत्र पत्रिकाओं के जरिये जनमानस के अंदर देश प्रेम की भावना जागृत करने , स्वतंत्रता का अलख जगाने का महत्वपूर्ण कार्य किया था। लेकिन वर्तमान में कुछ इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया के लोग पार्टी विशेष या व्यक्ति विशेष पर आधारित प्रचार प्रसार में जुट कर मीडिया की गरिमा को धूमिल कर रहे है जो किसी भी देश के राजनितिक,सामाजिक या आर्थिक विकास के लिए अच्छा संकेत नहीं है। आजकल देश की राजनैतिक और सामाजिक परिस्थिति ऐसी है कि किस पार्टी का कौन सा नेता या सामाजिक सरोकारों से सम्बद्ध कोई सामाजिक कार्यकर्ता या विभिन्न संगठनो के लोग कब क्या बयान दे देंगे इसका कोई भरोसा नहीं रह गया। स्वस्थ लोकतांत्रिक परंपरा के विपरीत आज के राजनीतिज्ञ और सामाजिक कार्यकर्ता अपनी भावनाओ और विचारों पर नियंत्रण नहीं रख पाते और ऐसी बातें बोल जाते है जिनसे देश की सदभावना, एकता और अखंडता को नुक्सान पहुँचता है, जाति , धर्म , नारी ऐसे संजीदा विषय है जिनपर दिए गए इनके बयान समाज को दुःख और दर्द ही बांटते हैं। इतना ही नहीं ये लोग एक दूसरे पर ऐसे ओछे आरोप प्रत्यारोप लगाते है जिससे देश की आम जनता का दिल आहत होता है साथ ही विदेशों में देश की छवि धूमिल होती है. आये दिन महिलाओं साथ घटने वाली घटनाओ के बुरे पहलू को समाज और देश के सामने नमक मिर्च लगा कर परोसा जाता है जो किसी भी तरह उचित नहीं है।
ऐसे समय में ये बहुत आवश्यक है कि देश का चौथा स्तम्भ कहे जाने वाला मीडिया अपनी सकारात्मक भूमिका निभाये चाहे वो प्रिंट मीडिया हो या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया। क्योंकि ऐसे वक्तव्य तमाम टी वी चैनल्स प्राथमिकता से दिखाते है। वास्तव में ये नेता देश की भोली भाली जनता का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास कर रहे है और इसी उद्देश्य से वे ऐसे स्टेटमेंट देते है जिससे देश में ईर्ष्या , द्वेष की भावना पनप रही है। मीडिया को अपनी “टी आर पी” की चिंता किये बगैर ऐसे नेताओं की बातें , उनके विचार को कोई महत्व नहीं देना चाहिए। इसी तरह महिलाओं के साथ आये दिन होने वाली दुर्घटनाओं को सलीके से प्रस्तुत करना चाहिये जिससे नारी समाज को ठेस न लगे , बुरे पहलु के साथ उसके सकारात्मक पहलुओ की ओर भी ध्यान दिलाना चाहिए। साथ ही मीडिया को ऐसे समाचारों , घटनाओ को प्रमुखता से दिखाना और प्रकाशित करना चाहिए जिसमे देश की सांस्कृतिक परम्परा , सरकार की योजनाओं , देश की समस्याओं के साथ विकास की योजनाओं और समृद्धि को मजबूती मिले। अगर गौर किया जाये तो हमारे देश में रोज ही हजारों ऐसी घटनाएँ घटती है जिन्हे दिखाकर टी वी चैनल्स अपनी “टी आर पी” बढ़ा सकते है।
वैसे भी कहा जाता है की मीडिया की ताकत का कोई मुकाबला नहीं है। मीडिया की ताकत ने देशों के तख्ते पलट दिए है, अनेक आंदोलनों को उनके मुकाम तक पहुचाया है। अनेक सरकारी योजनाओं को सफल बनाया है। अब समय आ गया है की मीडिया अपनी उस ताकत को पहचाने और देश और समाज को सही सोच के साथ सकारत्मक दिशा में आगे ले जाए।
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