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विपक्ष को स्वार्थ की राजनीति छोड़ने की आवश्यकता

NAV VICHAR
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किसी भी राष्ट्र के लिए वहां की संसद सर्वोच्च संस्था होती है जहाँ पर उस राष्ट्र के विकास के लिए नियम, कानून, योजनाएं बनाने और उसे क्रियान्वित करने का काम किया जाता है , पर दुर्भाग्यवश अपने देश में इस संस्था की गरिमा बार बार धूमिल होती रही है और अब ऐसा लगता है की ये संसद नहीं वरन एक राजीनीतिक अखाडा बन कर रह गयी है . विपक्ष की भूमिका में कांग्रेस पार्टी का रवैया निहायत ही नकारात्मक रहा है और संसद में गतिरोध को समाप्त करने की सरकार और स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कोशिशे नाकाम रही है . लोकसभा अध्यक्ष द्वारा कांग्रेस के २५ सदस्यों के निलंबन को लेकर कांग्रेस का विरोध प्रदर्शन और संसद न चलाने का नकारात्मक रवैया उनकी राजनितिक सोच का परिचायक है . संसद जैसे पवित्र स्थान पर तख्तिया लेकर प्रदर्शन और अनुसाशन हीनता के कारन निलंबित सदस्यों का माफी मागने से इंकार करना संसद की अवमानना नहीं तो और क्या है . विपक्षी पार्टियों द्वारा पैदा किया गया यह गतिरोध से यही लगता है की उनकी मंशा देश के विकास में गतिरोध पैदा करना है और इससे बाद में उन्हें इस बात का ढिंढोरा पीटने का मौका भी मिल जाएगा की भाजपा सरकार ने कोई काम नहीं किया . कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियां अपने दायित्व को भूल गयी है . सभी को मालूम है की संसद चलाने पर एक दिन का खर्च लाखों में है और ये खर्च जनता के पैसों से ही तो किया जाता है और इन पार्टियों का अस्तित्व जनता से ही है और ये जनता सब देख रही है कौन पार्टी क्या कर रही है . आने वाले चुनाओ में जनता फिर बदला लेगी . अपनी जमीन खो चुकी कांग्रेस दरअसल किसी मजबूत मुद्दे को ढूढ़ने में नाकाम रही है और अर्थविहीन और महत्त्व विहीन राजनीती करने पर मजबूर दिख रही है . ऐसा लगता है की इस पार्टी के पास कुछ बोलने और कुछ करने को नहीं है . ये पार्टियां ये भी देख नहीं पा रही की उनके इस कृत्य को पूरा विश्व बड़े गौर से देख रहा है . लोकतान्त्रिक देश में संसद को ऐसे रिजल्ट देने चाहिए जिससे देश का विकास हो . गतिरोध के चलते संसद में कानून पारित करने का अपना उत्तरदायित्व भाजपा निभा नहीं पा रही है . संसद चालाने में रचनात्मक और सकारात्मक सहयोग देना विपक्ष की जिम्मेदारी है और इस जिम्मेदारी से वे बच नहीं सकते. कभी भी राजनितिक कारणों से संसद के काम में बढ़ा नहीं पहुचनी चाहिए ये सर्वथा अनुपयुक्त है . बहुत सी राष्ट्रिय और सामाजिक बिल जिनका लाभ सीधे जनता से जुड़ा हुआ है , पारित नहीं हो पा रहे है . वास्तव में संसद ऐसे विचार विमर्श का मंच है और अगर उसी का काम काज बाधित होता है तो स्वयं इस राजनितिक व्यवस्था को लेकर संशय पैदा हो जाता है . आज इस बात की आवश्यकता प्रतीत हो रही है की देश और जनता की भलाई के लिए राजनितिक दलों को स्वार्थ की और स्वयं की राजनीती से ऊपर उठ कर देश के विकास की राजनीती करनी चाहिए .

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