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किसी भी लोकतान्त्रिक देश में वहां की संसद को सर्वोच्च संस्था माना जाता है क्योंकि यही वो स्थान है जहाँ देश की जनता , समाज और राष्ट्र के विकास के लिए योजनाये ,नियम , कायदे , कानून बनते है , लागू कराये जाते है . पक्ष , विपक्ष दोनों की ही जिम्मेदारी होती है कि वो देश हित , जनहित को सर्वोपरि रखे . पर वर्तमान में ऐसा लगने लगा है की देश की संसद के लिए चुने गए प्रतिनिधि अपने इस जिम्मेदारी को बिसराते जा रहे है . देश की विकास की योजनाओं को बेहतर बनाने ,उन्हें बेहतर ढंग से लागू कराने जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों को छोड़कर वे व्यक्तिगत आक्षेप और अपनी पार्टी का वर्चस्व बनाने की जुगत में ही लगे दिख रहे है . पिछले कुछ समय में सांसदों के आचार विचार में बहुत बड़ा परिवर्तन दृष्टिगत हो रहा है . ये तो सीधे तौर उस जनता का अपमान है जिसने बड़ी बड़ी उम्मीदों से उन्हें चुनकर संसद में भेजा था. संसद के वर्तमान सत्र में सांसदों का आचरण इस बात की गवाही दे रहा है कि वे संसद को ऐसी संस्था मानते है जहाँ राष्ट्रिय मुद्दों के बजाये निजी और राजनितिक दुश्मनी निभाई जा रही है .
आज संसद में हम बार बार अवरोध देख रहे है . विपक्षी पार्टी कांग्रेस के पास सरकार में शामिल मंत्रियों पर आरोप , प्रत्यारोप से इतर कोई राष्ट्रिय और जनहित या देश हित से सम्बंधित मुद्दा नहीं दिख रहा . आज कांग्रेस जो कर रही है वही भाजपा उस समय कर रही थी जब वो सत्ता से बाहर थी और कांग्रेस सत्ता में थी . ये आचार व्यवहार अंततः छुद्र राजनीतिक स्वार्थ का परिचायक है . संसद अपनी परम्पराओं का अनुसरण करती है . यदि आज विपक्षी दल कांग्रेस संसद की कार्यवाही में अवरोध पैदा कर रही है तो कल सत्तारूढ़ होने पर उसे भी ऐसी स्तिथि का सामना करना पड़ सकता है . अब तो ऐसा लगता है कि जनता द्वारा चुने गए ये प्रतिनिधि जनता की मूल समस्याओं को सुलझाने की बजाय व्यक्तिगत आरोप और दुश्मनी निकालने में लगे है . संसद के वर्तमान सत्र में विपक्ष राजस्थान की मुख्यमंत्री के इस्तीफे को एक मुद्दा बनाये हुए है , लेकिन ये तो राज्य का मसला है , ये राज्य के क्षेत्र में हस्तपक्षेप करने वाला मुद्दा है . किसी भी राज्य का मुख्यमंत्री संसद की बजाय विधानसभा में जवाबदेह है ,संसद या संसद की कार्यवाही से इसका कोई लेना देना नहीं होना चाहिए . ललित मोदी प्रकरण को मुद्दा बनाये कांग्रेस ने विदेश मंत्री के इस्तीफे की मांग कर रही है ये जानते हुए भी कि मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति जिम्मेदार है . और जबतक उस मंत्री के आचरण और व्यव्हार से असंतुष्ट हो कर लोकसभा उससे इस्तीफे के लिए नहीं कहती तबतक इस तरह कि मांग का कोई अर्थ नहीं है . विपक्ष के इस अड़ियल रुख से संसद की परंपरा, मान सम्मान और गरिमा को ठेस पहुंच रही है, वही देश और दुनिया के सामने एक सवाल भी खड़ा हो रहा है कि क्या संसद केवल अपना स्वार्थ साधने का राजनितिक केंद्र बनता जा रहा है . राजनैतिक दलों कि यह प्रबृति उस सोच और भावना पर तुषारापात है जिसके लिए जनता ने उन्हें चुना है. . ऐसी परिस्तिथि में पक्ष और विपक्ष दोनों को विचार करने कि जरुरत है कि उनकी वजह से लोकतंत्र किस तरफ जा रहा है . उन्हें ये भी विचारने कि जरुरत है की संसद की गरिमा और सम्मान को कैसे बचाया जाये .
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