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ये शिक्षा कहाँ ले जाएगी हमें

NAV VICHAR
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पूरे देश में आजकल एडमिशन का मौसम है . अखबार हो या टी वी या कोई अन्य माध्यम ,सभी जगह स्कूल , कॉलेज और इंस्टीट्यूशंस अपने अपने ढंग से प्रचार कर रहे है . सभी सब्जबाग दिखाकर , अपनी उपलब्धिया गिनाकर बच्चों और अभिभावकों को अपनी तरफ आकर्षित करने का प्रयास कर रहे है . देश के तमाम इंजीनियरिंग कॉलेजों में तो जैसे होड़ सी लगी है अधिक अधिक बच्चों के एडमिशन करने की . यहाँ तक की अगर किसी का मोबाइल नंबर उन्हें गलती से मिल भी गया तो इतने मैसेज भेजे जा रहे है की मोबाइल वाला परेशान हो जाये , भले ही उसके घर में इंजीनियरिंग की पढाई करने वाला कोई कैंडिडेट हो या न हो . अब लगता है की ये कॉलेज पढाई का अड्डा न हो कर व्यवसाय का अड्डा हो गए है . लेकिन इन सब के बीच कुछ कॉलेज ऐसे भी जिनकी इमेज और रेपुटेशन पढाई के मामले में सर्वोच्च पर है और इनमे एडमिशन के लिए जबरदस्त मारामारी है . कुछ प्रोफेशनल कॉलेज की बात छोड़ दे तो कुछ विश्वविद्यालयों की रेपुटेशन तो बच्चों और अभिभावकों के मन मतिष्क पर छ सी गयी है . ऐसा ही कुछ है दिल्ली विश्वविद्यालय और उससे सम्बद्ध कुछ कॉलेजों की जिसमे एडमिशन लेना प्रतिष्ठा से जुड़ चूका है . यहाँ तो आलम ये है की एडमिशन का कट ऑफ मार्क हर साल ऊपर की ओरही बढ़ता जा रहा है . पिछले वर्षों में इस विश्वविद्यालय से सम्बद्ध एक या दो कॉलेजों में कट ऑफ मार्क लगभग 99 या 100 प्रतिशत रहती थी पर इस वर्ष तो कई अन्य कॉलेज भी इसी श्रेणी में आ गए है . इसका बहुत बड़ा कारण इन कॉलेजों में एडमिशन पाने की चाहत वाले छात्रों की लगातार बढ़ती संख्या है . एक और कारण जो समझ में आता है वो है हर साल अच्छे नंबर पाने वाले छात्रों की संख्या में बढ़ोत्तरी होना . ऐसा शायद अपने शिक्षा व्यवस्था में नंबर लुटाने की नयी परंपरा के कारण भी है . अब अधिकांश छात्र 90 प्रतिशत से ऊपर नंबर पाते है , कुछ तो 100 में 100 भी पा जाते है . ऐसा नहीं है इनमे सभी छात्र इस काबिल होते है की वे शत प्रतिशत नंबर पा जाये , अगर ऐसा होता तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर होने वाली प्रतियोगिताओं में वे फिसड्डी क्यों साबित होते . वास्तव में ये आसानी से पचा लेने वाली बात नहीं है की अपने देश में शिक्षा का स्टार कही न कहीं नीचे गिरा है और इसकी सबसे बड़ी वजह इसका राजनीतिकरण होना है . ऐसा शायद किसी भी देश में नहीं है . दरअसल समस्याएं हर देश और समाज में होती है पर उन्हें सहजता और सकारात्मकता से हल करने वाला देश और समाज ही आगे बढ़ता है . अब समय आ गया है की हम इस सोच से बाहर निकलकर छात्रों के लिए उचित क्या है इस पर विचार करे और इसको शिक्षा के रूप में ही स्वीकार करे न की इसका राजनीतिकरण कर निजी स्वार्थों के लिए उपयोग करे तभी छात्रों का और इस देश का भला होगा.

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