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बात चाहे पिछली सरकारों की हो या वर्तमान सरकार की , कही न कहीं हर सरकार की सोच देश की जनता के लिए कार्यकारी योजनाये बनाने और उसे लागू करने की होती है . लेकिन अफ़सोस की बात ये है की केंद्र सरकार की कोई भी योजना बिना राज्य सरकार के सहयोग के प्रभावी नहीं हो सकती , और यही समस्या की मूल जड़ है . ये इस देश का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा की जनता के कल्याण की योजनाओं को लागु करने का निर्णय वोट बैंक और स्वार्थ के आधार पर लिए जाते है . राज्य सरकार केवल अपना फायदा देखती है. जबकि किसी भी योजना के क्रियान्वयन के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकार का आपसी तालमेल बहुत जरुरी होता है . यही कारण है कि उन राज्यों में सरकारी योजनाये बढियां ढंग से लागू हो पाती है जहाँ केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी की सरकारें है . एक महत्वपूर्ण बात और सामने आती है, कि सरकारी योजनाओं को लागू करने वाले अधिकारी कितने ईमानदारी से प्रयास करते है . इन अधिकारीयों की नियुक्ति भी सरकारी मंत्रियों और नेताओं पर निर्भर करती है . कुछ नेता तो इन योजनाओं के लिए निर्गत फण्ड को अपना हित साधने में लगाने के लिए अपने मनपसंद अधिकारीयों कि नियुक्ति भी करा देते है. इस तरह का नजरिया गैर जिम्मेदाराना और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है . अधिकारीयों की ट्रांसफर ,पोस्टिंग में राजनैतिक दखल के कारण ही जिला स्तर पर अधिकारीयों का कार्यकाल बिलकुल अनिश्चित होता है . ट्रांसफर के भय से ही सरकारी योजनाओं का क्रियान्वयन में पूरी तत्परता और चपलता नहीं दिखती . यही नहीं ये फ़र्ज़ी आकड़ें बाजी को भी बढ़ावा देती है . उपलब्धियों को सरकारी दस्तावेजों में बढ़ा चढ़ा कर दिखाया जाता है जो निश्चित रूप से कही न कहीं भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है .
सबसे महत्वपूर्ण बात की ऐसे अधिकारीयों में जन कल्याणकारी योजनाओं को सही रूप में लागू करने की प्रशासनिक इच्छाशक्ति , नियंत्रण करने की ललक समाप्त हो जाती है और वे पूरी तरह सत्ताधारी पार्टी और सरकार के दबाव में काम करने लगते है . राजनेता भी आम जनता के विकास के लिए नहीं वरन अपने उन्नति के लिए काम करवाने लग जाते है . ऐसे ही अवरोधों के चलते केंद्र सरकार की दस में से हर चौथी इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजना अपने समय से पीछे चल रही है और आम जनता इससे प्रभावित हो रही है . वास्तव में ये अवरोध हमारी राजनितिक सोच में रच बस गयी है . केंद्र सरकार कोई योजना बनती है लेकिन उसकी अच्छाई को जान समझकर भी दूसरी किसी पार्टी की राज्य सरकार उसमे रूचि नहीं लेती क्योंकि को इससे उसकी वोट बैंक की राजनीती प्रभावित होती है .
सोच और राजनितिक विरोध के साथ ही साथ प्रक्रियागत अवरोध भी उत्पन्न हो जाता है जिसके लिए सीधे तौर पर राज्य सरकार ही जिम्मेदार होती है . कुल मिला कर यही लगता है की अगर बहुत जल्द ही इन सबका समाधान नहीं ढूँढा गया तो हमर देश विश्व रैंकिंग में कही पीछे छूट जायेगा और पूरी क्षमता और सामर्थ्य के बावजूद विकास की प्रक्रिया में हम पीछे ही रह जायेंगे .
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