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किसी भी देश के लिए ये दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति कही जा सकती है , जहाँ के कुछ राजनेता देश कि एकता और अखंडता को तोड़ने की कोशिश में हो . पिछले दिनों भाजपा और शिवसेना के नेताओं ने मुस्लिम समुदाय के विषय में अवास्तविक और अतार्किक बयान देकर देश की थाती गंगा जमुनी संस्कृति , संस्कार और सद्भावना को ख़त्म करने का प्रयास किया है . ये नेता जितनी तत्परता से बेतुके बयान देते है , उतनी तत्परता यदि वे अपने इलाके की समस्याओं के समाधान में दिखाते तो निश्चित ही देश की जनता का भला होता . शिवसेना के नेता संजय राउत ने मुस्लिम समुदाय से मताधिकार छीनने की बात की , वे शायद भूल गए कि देश को स्वतंत्र कराने में अनेको मुस्लिम लीडरो ने किस तरह अपने प्राणो कि आहुति दी . इस तरह कि मांग सर्वथा असंवैधानिक तो है ही साथ ही भारतीय संविधान के सिद्धांत के विरुद्ध भी है . अपने देश में कभी भी धर्म के आधार पर किसी को मताधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता.
ऐसे बयान देने के पीछे शिवसेना के नेता ने ओबैसी भाइयों जैसे कुछ मुस्लिम नेताओं के मुस्लिम वोटों की राजनीती करने का हवाला दिया है. इसमें कोई दो राय नहीं की ओबैसी भाइयों के जलसों में उनकी तहरीर हिन्दुओं और हिन्दू संगठनो के विरुद्ध जहर उगलने के सामान ही होते है और उनकी इन बातों से मुस्लिम समुदाय के मानस पटल पर हिंद्यों के प्रति घृणा और द्वेष कि भावना भी फैलती है . इनके उत्तेजित करने वाली बातों से कई बार तो देश में असहज स्तिथि भी पैदा हो जाती है , पर इसका मतलब ये नहीं कि सभी मुस्लिम ऐसे ही है. आजकल मुसलमानो की शिक्षा और सेहत जैसे मुद्दों को राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है. लेकिन इस बात में कोई संदेह नहीं कि ऐसे बेतुके बयान देश कि लोकतान्त्रिक और धर्मनिरपेक्ष ताने बाने के लिए खतरा है और इससे निपटने के लिए व्यापक आधार पर सभी राजनीतिक दलों को एक मंच पर आने कि जरुरत है. भारतीय संविधान देश के हर नागरिक को जाति, धर्म और सम्प्रदाय का भेदभाव किये बगैर सामान अधिकार प्रदान करता है , देश का कानून समभाव पर आधारित है. मुसलमान सहित सभी अल्पसंख्यक उसी तरह देश के नागरिक है जिस तरह बाकी के लोग है . आज जरुरत इस बात की है कि सभी धर्मो , समुदाय के लीडर अपनी वाणी पर संयम रखकर देश की एकता , अखंडता और सद्भावना को मजबूत करने की कोशिश करे न की तोड़ने की .
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