- 157 Posts
- 184 Comments
प्रसिद्ध सूफी गायक कैलाश खेर का एक लोकप्रिय गाना है ,”प्रीत की लत मोहे ऐसी लागी मै हो गयी मतवारी , बलि बलि जाऊं अपने पिया को.. . । ” भारतीय क्रिकेट प्रेमियों की दशा भी कुछ ऐसी है। उन्हें जीत की लत सी लग गयी थी इसी लिए विश्व कप के सेमीफइनल में ऑस्ट्रेलिया से भारत की हार को उन्होंने दिल से ही लगा लिया। यही समस्या है हम भारतीयों की हम खेल को खेल भावना से नहीं लेते। यही खिलाडी जब लगातार सात मैचों में विजयी रहे हमने इन्हे सर आँखों पे बैठा लिया और अब.. . . . . .
हमें वो दिन भी नहीं भूलना चाहिए जब विश्व कप शुरू होने के पहले भारतीय टीम के बुरे प्रदर्शन को लेकर खिलाडियों सहित चयनकर्ताओं और कप्तान को लेकर अनेक आरोप प्रत्यारोप लगते रहे थे पर पाकिस्तान के खिलाफ एक जीत से ही सारा कुछ ठीक हो गया . यही तो भारत की जनता है जो बहुत जल्द ही दुःख को भूलकर सुख को आत्मसात कर लेती है . विश्व कप के ठीक पहले ऑस्ट्रेलिया में अपने टीम की जो हालत थी , उस समय किसी ने ये भी नहीं सोचा था भारत क्वार्टर फाइनल तक भी पहुंचेगा तो फिर इतनी हाय तौबा क्यों। पाकिस्तान के खिलाफ भारतीय टीम की ९० दिनों बाद ये पहली जीत थी और तब ऐसा लगा था की जैसे पूरी टीम चार्ज हो गयी . शिखर धवन, विराट कोहली इस मैच के पहले तक अपने ख़राब फार्म से जूझ रहे थे पर लगातार मैच में उनका खेल देखकर कही ऐसा नहीं लगा की वे कभी आउट ऑफ़ फार्म थे . यही हॉल गेंदबाजी में भी था . लगभग सभी गेंदबाजों ने बेहतर प्रदर्शन किया .
किसी भी मैच के लिए किसी एक खिलाडी को दोष देना ठीक नहीं। क्योंकि मैच में जीत हार सामूहिक प्रयास का नतीजा होता है। जिस प्रकार से विराट कोहली और अनुष्का को लेकर मीडिया , सोशल साइट्स पर मखौल उड़ाया जा रहा है वह भारतीय संस्कृति और परंपरा के विरुद्ध है। हमें कोई हक़ नहीं है किसी भी खिलाडी के व्यक्तिगत मामलों का मजाक उड़ाने की।
जब ऑस्ट्रेलिया दौरे में टेस्ट मैचों में कोई भी खिलाडी बढ़िया प्रदर्शन नहीं कर पा रहा तब यही विराट थे जिन्होंने दो शतक लगाकर अपना जलवा दिखाया था और वो भी अनुष्का के दर्शक दीर्घा में होने पर तब तो उनकी उपस्थिति को लेकर हमने कोई आपत्ति नहीं की थी ,पर अब क्यों। अपने देश में इस मैच में हार के बाद इन खिलाडियों के विषय में जो कुछ कहा और किया जा रहा है उससे खिलाडियों का मनोबल कितना गिरेगा , इसके बारे में हम नहीं सोचते। किसी रूप में इसे उचित नहीं कहा जा सकता।
ये तो जीत हर का खेल है , हमारे सभी खिलाडियों ने पूरे जी जान से मैच खेला है, उन्होंने जीतने के लिए खेला है. हमें तो इन पर गर्व करना चाहिये। विश्व कप के सेमीफइनल तक पहुचना भी कम नहीं होता। ये जरुरी नहीं की हमेशा जीत ही हो। इस हार के लिए उनको दोषी ठहराना ठीक नही. कमी हमारे अंदर ही है की हमें जीत के साथ साथ हार को स्वीकारना नहीं आता ।
Read Comments