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उस दिन नयी दिल्ली स्टेशन से बाहर आते ही मुझे अपना पुराना दोस्त सुनील मिल गया . कुछ अफ़िसिअल काम से नयी दिल्ली में मैं लगभग दस सालो बाद आया था . यहाँ से पढाई पूरी करने के बाद नौकरी के कारण मैं लखनऊ आ गया था .
अचानक मिलने पर वह भाव विभोर हो उठा और मेरे लाख मना करने पर भी मुझे अपने घर ले आया .पुरानी बातें और यादें ताजा होने लगी . अपनी पत्नी से नाश्ता बनाने को कहकर वो मुझे अपने बच्चे के साथ ड्राईंग रूम में छोड़कर घर के भीतर किसी काम से चला गया। थोड़ी देर बाद मैंने बच्चे से पुछा , “पापा कहाँ गए ?.”……” क्या कर रहे हैं ?” उसने बड़ी ही मासूमियत से कहा ,” अंकल , पापा कुछ जरूरी काम कर रहे है …..अभी आ जायेंगे .
कुछ देर इन्तेजार करने के बाद मैं ड्राईंग रूम में यू ही चहलकदमी करने लगा . तभी मैंने खिड़की से दुसरे कमरे में देखा तो हैरान रह गया . सुनील बड़ी ही सहजता और शालीनता से चारपाई पर पड़े लाचार पिता के मल मूत्र की सफाई कर रहा था . उसने उनके कपडे बदले, बिस्तर साफ़ किया, दवा पिलाई फिर उन्हें लिटाकर बड़ी तेजी से मेरे पास आ गया।
मैंने अन्जान बनते हुए उससे पुछा , “कहाँ चले गए थे ……..? उसने बड़े ही संकोच भरे लहजे में जवाब दिया ,” बस …यू ही ज़रा …पूजा का समय हो गया था न ….”
उसकी इस बात पर मैं विस्मृत रह गया साथ ही विवश भी हुआ सोचने पर की आज के आधुनिक ज़माने में किसी बेटे के द्वारा अपने लाचार पिता की इस तरह सेवा करना , उनका ध्यान रखना किसी पूजा से कम तो नहीं . …….मैं अवाक ..सा उसका चेहरा देखता रह गया।
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