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जम्मू कश्मीर में पीडीपी सरकार

NAV VICHAR
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इस माह के पहले ही दिन जम्मू कश्मीर में दो अलग विचारधारा वाली पार्टियों के गठबंधन से नई सरकार का गठन हुआ . जम्मू कश्मीर के लिए ये एक नए अध्याय के आरम्भ जैसा था . क्योंकि सरकार बनने के साथ ही , विचारधाराओं की भिन्नता का आभास होने लगा . इतना ही नहीं सरकार के बनते ही पीडीपी ने इस बात का भी एहसास करा दिया की वे सत्ता के लिए अपनी विचारधारा से समझौता नहीं कर सकते . यही कारण है की गठबंधन से सरकार बनने का जश्न मनाना अभी शुरू भी नहीं हुआ था कि इसके ख़त्म होने का खतरा दिखने लगा . यद्यपि राजनैतिक विश्लेषक सरकार के गठन से पहले ही इस बात के कयास लगा रहे थे कि स्थिर सरकार देना ,इतना आसान नहीं होगा लेकिन किसी ने ये भी नहीं सोचा था कि सरकार के गठन के चौबीस घंटे में ही ये खतरा उत्पन्न हो जायेगा .
मुख्यमंत्री मुफ़्ती मोहम्मद सईद का जम्मू कश्मीर में शांतिपूर्ण चुनाव के लिए पाकिस्तान और अलगाववादी ताकतों की तारीफ करना भाजपा के लिए असहज स्तिथि पैदा करने वाली थी , इतना ही नहीं अफजल गुरु की अस्थियों को कश्मीर को वापस करने जैसा बयान देकर मुफ़्ती सईद ने अपनी विचारधारा का स्पष्ट संकेत दे दिया है . गठबंधन सरकार के गठन के आरम्भ में ही इस तरह की बातें कहकर उन्होंने इस बात का सन्देश भी दिया है कि उनकी राजनीती कुर्सी या सत्ता पाने के लिए नहीं है . अगर कुछ पीछे देंखे तो वास्तव में पीडीपी कांग्रेस से अलग हुई एक पार्टी है, जिसे पाकिस्तान से समर्थित कुछ अलगाव्वादी और उग्रवादी संगठनो का भी आशीर्वाद प्राप्त है , इसीलिए ऐसी ताकतों कि बड़ाई करना उनकी मजबूरी भी हो सकती है .
ऐसा नहीं कि मुख्यमंत्री का ये बयान भूलवश आ गया हो , ये सब उनके जैसे सीनियर और अनुभवी नेता कि सोची समझी राजनीती की चाल है क्योंकि उन्हें ये भी पता है कि भाजपा ऐसे मुद्दों पर इतनी जल्दी कोई नकारात्मक निर्णय ले सकती है . उन्होंने जम्मू कश्मीर की जनता के साथ साथ उन अलगाववादी ताकतों को भरोसा दिलाने की कोशिश की है कि साझा कार्यक्रमों के बावजूद भी कुर्सी के लिए वे भाजपा से किसी भी मुद्दे पर दबेंगे नहीं .
इसके पीछे एक और बड़ा कारण जम्मू के भाजपा विधायको कि सत्ता पर आरूढ़ होने की भूख भी है, जिसे मुफ़्ती सईद ने पहचान लिया है . यही कारण है भाजपा के अंदर बेचैनी होने के बाद भी जम्मू में सरकार गठन का फैसला लेना पड़ा. यही नहीं वहां सरकार गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले कुछ सीनियर भाजपा नेताओं और संघ नेताओं की साख भी दांव पर लगी हुई है . यदि भाजपा सरकार से समर्थन वापस लेने की सोचती भी है तो इससे एक तरफ तो इन नेताओं के राजनितिक कौशल पर सवाल खड़े होंगे दूसरी तरफ देश और जम्मू की जनता पर इसका नकारात्मक प्रभाव भी पड़ेगा जिसके लिए भाजपा बिलकुल ही तैयार नहीं होगी .
लगता ऐसा है की गठबंधन की सरकार बनाने के लिए तैयार होकर भाजपा मुफ़्ती सईद के राजनैतिक चक्रव्यूह में फंस गयी है . ऐसे विवादों का ब्यापक राष्ट्रीय प्रभाव भी पड़ रहा है और भाजपा की इमेज भी प्रभावित हो रही है. कुल मिला कर यही कहा जा सकता है की जम्मू कश्मीर में चित भी पीडीपी की और पट भी पीडीपी की ही है . लेकिन ध्यान रखना होगा की इनसब से वहां की जनता का नुक्सान न हो , न ही विकास बाधित हो .

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