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न सिर्फ अपने देश में वरन पूरे विश्व में सर्वाधिक चर्चित दिल्ली के निर्भया कांड पर बनी डॉक्यूमेंट्री फिल्म के बीबीसी पर प्रसारण ने हंगामा खड़ा कर दिया है। देश की महिलाओं की दयनीय स्तिथि को और शर्मसार करने वाली इस फिल्म के प्रसारण को रोकने को लेकर सरकार द्वारा सुस्ती में उठाये गए कदम की आज हर ओर चर्चा है। सरकारी दावों के बाद भी इंटरनेट पर लोग इसे देख पा रहे है।
आज कई सवाल एक साथ खड़े है , हमारे देश की न्याय व्यवस्था का लचीलापन ही तो है जिसने दोषियों को ऐसी हालत में रखा कि वे इंटरव्यू दे पा रहे है। दूसरी बात , बीबीसी को फिल्म बनाने की इजाजत क्यों और किन परिस्थितियों में दी गयी , इसके लिए दोषी कौन है। वास्तव में देश की न्यायिक प्रक्रिया की धीमी गति ऐसे दुष्प्रवित्यों को बढ़ावा देने का काम करती है। इस कांड को लेकर महिलाओं का गुस्सा जायज है। महिला संगठनो और सांसदों की मांग की दुष्कर्मियों को उन्हें सौप देना चाहिए बिलकुल सही लग रही है। दोषी ने जिस अपने कृत्य को सही और जायज ठहराया है और उलटे लड़की को दोषी बताया है , इतना ही नहीं उसके वकीलों ने महिलाओं के लिए जिस तरह शब्दों का प्रयोग किया है , इससे देश की महिलाओं का उद्द्वेलित होना बिलकुल जायज है। दरअसल इस फिल्म के बनने और इसके प्रसारण से देश में महिलाओं के मान सम्मान को ठेस पहुंची है। निर्भया के माँ बाप ने कहा है कि वे इस बात से आश्चर्य में है कि अदालत की रोक के बाद भी बीबीसी ने फिल्म का प्रसारण कैसे कर दिया।
फिल्म बनाने वालों के इस बात से कत्तई इत्तेफाक नहीं किया जा सकता कि फिल्म के जरिये महिलाओं के प्रति पुरषों का नजरिया सामने लाने की कोशिश कर रहे है। जहाँ तक अपने देश में न्याय प्रणाली की बात है तो इस ‘लोक-तंत्र’ की न्याय-व्यवस्था ऐसी लाचार है कि न्याय की मौत ही होकर निकलती है – न्याय कभी न्यायालय से जीवित नहीं निकलता जिसे देख-सुनकर जन-मानस पुलकित हो, हर्षित हो. ऐसे में ही दुष्कर्मियों का हौसला बढ़ता जाता है. ये तो सरासर उस आंदोलन का अपमान है जिससे न सिर्फ दिल्ली वरन पूरे देश को महिला सुरक्षा और उनके सम्मान के लिए आंदोलित किया था.
यद्यपि सरकार देश के सम्मान को ठेस पहुचाने वाले इस मामले को लेकर काफी संजीदा है और जेल में इंटरव्यू की अनुमति से लेकर फिल्म के प्रसारण तक के सभी बिन्दुओं पर कार्यवाही का मन बना रही है लेकिन इस बात में दो राय नहीं कि कुछ अमानव कहे जाने वाले लोंगो के माध्यम से पूरे विश्व में भारत की छवि को धूमिल करने के विचार से इस फिल्म का निर्माण किया गया है और इसी उद्देश्य से इसका प्रसारण किया जा रहा है. पर उद्देश्य चाहे जो हो इससे महिलाओं के सम्मान को नुक्सान पहुंच रहा है और इस समय सबसे महत्वपूर्ण ये है कि हर भारतीय के मन में किसी भी तरह उनके प्रति सम्मान की भावना जागृत की जाये।
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