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लघु कथा : मानवता का पाठ

NAV VICHAR
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उस शहर की आबादी  आधी आधी थी , यानि वहाँ के बाशिंदो में आधे हिन्दू और आधे मुस्लिम थे।  लेकिन उनमे बेमिसाल आत्मीयता और सदभावना  थी।  एक  दूसरे के रीति रिवाज , तीज  त्यौहार सब मिलकर मनाते थे।   पर पिछले कुछ महीनो में  जाति और धर्म के नाम पर राजनीति की ऐसी दूषित हवा चली की कुछ नौजवान उस हवा के साथ बह चले ,  परिणाम ये हुआ कि उस शहर के अमन चैन को  नज़र लग गयी। 
रमन अभी  कुछ दिनों  पहले  ही ट्रान्सफर होकर उस शहर में आया था।  परिवार में पत्नी और दो साल का एक छोटा बच्चा था।  एक  दिन  बच्चे की  तबियत  ख़राब हो जाने के कारण ,  उन्हें डॉक्टर के यहाँ जाना पड़ा।  शाम का समय था , वे बच्चे को दिखाकर क्लिनिक से बाहर निकले ही थे  कि  चारों तरफ अफरा तफरी मच गयी।  सभी तेजी से भागने लगे।  पता चला कि  शहर के बाहरी  छोर पर दंगा हो  गया है। रमन  का घर  डॉक्टर कि क्लिनिक से काफी दूर था  और उसके पास कोई वाहन  भी नहीं था।  इस भगदड  में रिक्शेवाले भी भाग चले गए थे। 
उन्हें परेशान देख कर एक नवजवान  ऑटो वाला उनके पास आया और उन्हें बिठाकर चल पड़ा. रास्ते में   कई  जगहों पर भीइ से बचाते  हुए ऑटो वाला  बड़ी ही  होशियारी से चल रहा था। 
ऑटो  में बैठे रमन और उसकी पत्नी  मुस्लिम युवकों को कोस रहे थे जिनकी सम्प्रदायकिता   की आंधी में  शहर में बार बार  दंगे भड़क रहे थे  पर वह युवक बिना विचलित हुए मुस्कुराते हुए ऑटो चला रहा था ।  अबतक रमन का घर आ चूका था।  ऑटो से उतरकर  रमन ने  उस युवक को  सौ  रूपए का नोट दिया  और आभार   जताते हुए उसका नाम पूछा।  युवक ने  मुस्कुराते हुए उत्तर दिया ,”मेरा नाम अकबर खान है  , सभी मुस्लिम एक जैसे नहीं होते सर, उनमे भी मानवता होती है “.  इतना कहते हुए उसने ऑटो बढ़ा लिया।  रमन और उसकी पत्नी संज्ञा शून्य  हो एकटक उसे दूर तक जाते देखते रहे। अनजाने में ही, सही ऑटो वाले ने उन्हें मानवता का पाठ पढ़ा दिया था।

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