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शायद हमने कभी इस बात की कल्पना नहीं की होगी की सरकारी , गैरसरकारी कार्यालयों की तरह राजनीती में भी छुट्टी की व्यवस्था हो सकती है . कहने और सुनने में ये बड़ा ही अटपटा सा लग रहा है की सार्वजानिक जीवन जीने वाला व्यक्ति कभी छुट्टी पर जा सकता है . क्या कोई समाजसेवी या राजनीतिज्ञ को अपनी जिम्मेदारियों से छुट्टी मिल सकती है . लेकिन अपने देश में ऐसी परंपरा शुरू हो चुकी है . तभी तो अपनी राजनैतिक जिम्मेदारियों से दूर रहते हुए लोकसभा में विपक्षी पार्टी के उपाध्यक्ष लम्बी छुट्टी पर चले गए है . भले ही उस समय उनकी छुट्टी स्वीकृत न रही हो .
अब इसे देश के मुख्य विपक्षी दल के अंदर की कलह को उजागर करने वाली स्तिथि समझी जाय या लगातार पराजय की खीज जिसने उन्हें छुट्टी पर जाने को विवश किया . लेकिन उनके दल के लोगो ने इसे बड़ा ही अच्छा नाम दिया है “आत्मचिंतन” का . पता नहीं ये उनकी पार्टी की हार के लिए आत्मचिंतन है या अध्यक्ष पद की कुर्सी पाने के लिए. वास्तव इस विपक्षी पार्टी को कोई दिशा निर्देशक नहीं मिल पा रहा है . जो पुराने जीवट वाले लोग है उनकी आवाज़ में अब दम नहीं रह गया या दुसरे शब्दों में उनकी आवाज़ को दबा दिया गया और नयी सोच और दमदार आवाज़ के लोगो को आगे बढ़ने नहीं दिया जा रहा. आस्तीन चढ़ा कर संसद से सड़क तक के युद्ध की घोषणा करने वाले उपाध्यक्ष खुद बजट सत्र के शुरू होने से पहले ही छुट्टी पर चले गए . शायद वे इस पार्टी को अपने अनुरूप चलना चाहते है , कुछ नए और जोशीले लोगो को आगे लाना चाहते है पर उनके अपने परिवार के लोग ही उनका साथ नहीं दे रहे , शायद इसी लिए वे नाराज होकर छुट्टी पर चले गए . विडम्बना तो ये भी है की इस विषय पर उनके अपने ही सफाई देने से कतरा रहे है . बजट सत्र से पहले उन्हें बुलाने और मनुहार करने की बहुत कोशिशे की गयी पर नाकाम रही . ऐसी नाराजगी पहली बार नहीं देखि गयी . उनकी सरकार के समय पार्टी स्थापना दिवस पर , प्रधानमंत्री के रूप में मनमोहन सिंह जी की विदाई समारोह के समय भी उनकी नाराजगी उजागर हुई थी .
अब ऐसे में जितने मुह उतनी बातें , कहने को तो लोग यही कह रहे है की राजनीती में छुट्टी ली नहीं जाती बल्कि जनता छुट्टी कर देती है . भाई बात जो भी हो पर सच तो ये है की अपने देश में छुट्टी पर जाने की अच्छी परम्परा चल पड़ी है .
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