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इस समय अपने देश की जनता में क्रिकेट का बुखार चढ़ा हुआ है और उसी को भुनाने के लिए देश के लगभग सभी प्रमुख टी वी चॅनेल्स के बीच विश्वकप क्रिकेट की कवरेज को लेकर घमासान सा मचा हुआ है . अपनी अपनी टी आर पी बढ़ाने के चक्कर में चॅनेल वाले ये भी भूल से गए है की देश और समाज के प्रति उनकी जिम्मेदारियां कुछ और भी है . वास्तव में मीडिया को किसी भी देश के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है और अपने देश में तो इसे चौथे स्तम्भ का दर्जा प्राप्त है , ऐसे में इसकी जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है . इस समय आवश्यकता है उन्हें सकारात्मक भूमिका निभाने की. क्योंकि इस समय कुछ क्रिकेट खिलाडियों के बारे में ऐसी ऐसी बाते प्रचारित करने की कोशिश की जा रही है जिनसे खिलाडियों का ध्यान भटके, उनकी एकाग्रता भंग हो और उनका प्रदर्शन प्रभावित हो .
सोचने की बात ये भी है की टी वी चॅनेल्स ने ऐसे एक्सपर्ट्स को अपने पैनल में रखा है जो बोलने में तो बहुत माहिर है भले ही अपने खेलने के समय भारतीय टीम और देश के लिए उनका योगदान कुछ भी न रहा हो . लेकिन खिलाडियों में कमी निकालने में उनसे चूक नहीं होती, यद्यपि अधिकांशतः ऐसे नहीं है , लेकिन कुछ तो ऐसे है ही जो की बिना वजह बाल की खाल निकालते है, गड़े मुर्दे उखाड़ने की कोशिश करते है . टी वी चॅनेल्स को ऐसे नौसिखिये एक्सपर्ट्स के चुनाव में सतर्कता बरतनी चाहिए. ये इस लिए भी जरुरी है क्योंकि अभी विश्वकप की शरुआत ही हुई है और इनकी आलोचना करने की ये आदत न सिर्फ भारतीय खिलाडियों के उत्साह को कम कर सकती है वरन आम जनता के मन में भ्रम पैदा कर सकती है .
मीडिया को अपनी “टी आर पी” की चिंता किये बगैर ऐसी बातें , उनके विचार को कोई महत्व नहीं देना चाहिए। वरन मीडिया को ऐसे समाचारों , घटनाओ को प्रमुखता से दिखाना चाहिए जिससे भारतीय खिलाडियों की हौसलाफजाई हो, उनके मन में नकारात्मक विचार न आये और वे दुगने उत्साह के साथ खेल सके, उनकी एकजुटता , आपसी सौहार्द और समन्वय में वृद्धि हो सके । अगर गौर किया जाये तो हमारे देश में रोज ही हजारों ऐसी घटनाएँ घटती है जिन्हे दिखाकर टी वी चैनल्स अपनी “टी आर पी” बढ़ा सकते है।
वैसे भी कहा जाता है की मीडिया की ताकत का कोई भी मुकाबला नहीं है। उम्मीद यही की जानी चाहिए की मीडिया अपनी उस ताकत को पहचानकर भारतीय क्रिकेट खिलाडियों के मनोबल को ऊँचा उठाने में अपनी सकारात्मक भूमिका निभाएगा. जिससे एक बार फिर हमारा देश विश्वविजेता बन सकेगा . .
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