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चक्कर …एक मिनट का 

NAV VICHAR
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बस एक  मिनट  …अभी आया , बस एक मिनट …अभी किये देता हूँ …बस एक मिनट अभी चलता हूँ. अरे..अरे..घबराइए नहीं…दोस्तों, मैं कोई पहेली नहीं बुझा रहा आपसे . दरअसल ,’ बस एक मिनट’   ये तीन शब्द हमारे जीवन से कुछ इस कदर अपना सम्बन्ध जोड़   चुके हैं की लाख प्रयत्नों के बावजूद हम इनसे पीछा नहीं छुड़ा  पाते. 

ये शब्द जाने अनजाने, चलते फिरते, जागते सोते हमारे मुख से अनायास ही निकल पड़ते हैं.  कभी कभी तो ये किसी काम को कुछ समय के लिए, कुछ घंटो के लिए या फिर कुछ दिनों के लिए  टालने का प्रयास या बहाना बन कर रह जाते हैं. यदि गंभीरता से सोचें  तो लगभग प्रत्येक व्यक्ति के स्वभाव का महत्वपूर्ण  अंग बन चुकें है ये शब्द .

हमारी शाखा में हमारे एक सहयोगी को इसकी बुरी लत लग चुकी थी. बुरी लत इसलिए क्योंकि यह  ड्रग्स या नशाखोरी से किसी भी मायने में कम हानिकारक नहीं होती. किसी भी काम    को करने से पहले ‘बस एक मिनट’   कहने की उनकी आदत लोगों को नागवार गुजरती थी चाहे वे हमारे सहकर्मी हो या कस्टमर . मगर कोई करे भी तो क्या ?   भाई     ये तो आदत है , कोशिश करने पर भी जाते जाते जाएगी न….!

फिर इसके लिए कोई नियम कानून भी तो नहीं है , वर्ना ‘जो है सो है’,  ‘मतलब की’,  ‘ हेन  तेन’ , ‘बात ये है की’  आदि तकिया कलामों के इस्तेमाल पर रोक न लग जाती. लोग बिना कामा  फुलिस्ताप     के  सरसराते हुए बोलते न जाते  और फिर उच्च कोटि के वक्ता होने का सम्मान भी तो पाते. 

लेकिन ऐसा है नहीं ..ये तो मानवीय स्वभाव है . मनुष्य से गलतियाँ तो होती ही हैं . बुजुर्गों ने तो यहाँ तक कहा है की ,, आदमी गलतियों का पुतला है , ये गलतियाँ भले चाहे किसी भी रूप में क्यों न की गयी हों. 

खैर मैं भी किस लफड़े में फंस गया. चलते चलते अचानक ही ट्रैक बदल देना पुरानी    आदत है… आखिर मैं भी तो इंसान ही हूँ न , हाँ ..तो मैं कह रहा था की उन सज्जन को किसी भी काम को अंजाम देने में   ‘बस एक मिनट’   ही लगता था.

एक दिन की बात है . किसी कारनवश वे अपनी  बाईक   नहीं लाये थे . लेकिन अचानक किसी काम से उन्हें कहीं जाना था सो उन्होंने  एक   सहकर्मी से  बाईक    इस शर्त पर मांग ली की  ‘ बस एक मिनट’  में आ रहा हूँ.  बस यूँ गया और यूँ आया .

अब  जनाब… बाईक  तो उन्होंने ले लिया   लेकिन  इस एक मिनट के इन्तजार में लगभग सबकी आंखे पथरा गयी पथ निहारते निहारते .  बाईक   देने वाले सज्जन की आंखे बेसब्री से मiनो कह रही हों…’आजा   लौट के आजा मेरे मीत , तुझे मेरे गीत बुलाते हैं. ‘ 

यदि बात यहीं तक रह जाती तो भी गनीमत थी . मगर जनाब लगभग तीन घंटे बाद जब उनके दर्शन हुए तो सभी के होश वैसे ही गुम  हो गए जैसे जंगल में शेर की दहाड़ सुनकर हिरन के होश गुम   हो जाते हैं . उनके हाथ , पैर और सर में सुपर रिन की चमकार सी सफ़ेद पट्टियाँ  सुशोभित हो रही थीं… और बाईक  ..अरे जनाब उसकी तो मत पूछिए उन्हें तो पहचाना नहीं जा रहा था … बड़े आराम  से रिक्शे  पे लदे आ रहे थे……ऐसा लगता था मानो किसी कबाड़ी की दुकान से उठ कर सीधे चले आ रहे हों जनाब. 

दरअसल हुआ यूँ की एक मिनट के चक्कर में इतनी तेज बाईक   चलाई उन्होंने  की सामने आई  गाय  को टक्कर मार दी . अब ऐसे में नुक्सान तो उन्ही का होना था न …गाय का क्या होता..? बेचारे बुरी तरह घायल हो गए , गनीमत तो ये हुई की कोई हड्डियाँ नहीं टूटी. 

वैसे इस हादसे ने उनको ‘बस एक मिनेट’ की बुरी लत से छुटकारा दिला दिया . आज भी जब कभी हम उन्हें इस घटना की याद दिलाते हैं तो उनके मुख पर टँगी मुछे साढ़े नौ से सवा नौ बजा जाती है. 
लोग कहते है की खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है , इसका मतलब मैं तो समझ गया की कहने वाले ने सौ फीसदी सच कहा है और सच के सिवा कुछ नहीं कहा है ….मैं तो समझ गया …पर आप समझे क्या. ..?

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