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हमारे सामाजिक परिवेश की जड़ें ही ऐसी हो गयी हैजहां लड़के लड़कियों में भेदभाव उनके जन्म से ही आरम्भ हो जाता है । यही भेदभाव शायद सबसे बड़ा कारन है नारी के पिछड़ेपन का । कभी कभी तो हर मामले में योग्य होने के बावजूद उसे सिर्फ इसलिए पीछे रहना पड़ता है क्योंकि वह एक नारी है ।
जहाँ तक आजकल की आम चर्चा का विषय बना नारी के अस्तित्व और उससे हो रही छेड़छाड़ की बात है तो यह न सिर्फ एक मानसिक समस्या है वरन इससे कहीं ज्यादा सामाजिक समस्या भी है । वास्तव में नारी के पिछड़ेपन की दयनीय स्थिति की जड़े इतिहास और समाज में ही है । हाँ, यह हो सकता है इसकी स्थति , अलग अलग देशों और वहां के समाज के अस्तर के अनुसार भिन्न भी हों।
अब अगर अपने देश की बात करें तो यहाँ कुछ समय से नारी भ्रूण हत्या की घटनाओ में अचानक बढोत्तरी हुई है । इसके पीछे शायद माँ बाप के मन में होने वाली बेटी को लेकर असुरक्षा की भावना ही सबसे महत्वपूर्ण कारन है । एक और कारन हमारे समाज में जड़ बनाये बैठे लिंग भेद भी है । अधिकांश परिवारों में जहाँ लडको को आरम्भ से ही जीने की स्वतंत्रता मिली होती है वहीँ लड़कियों को ज्यादा बोलने , ज्यादा हसने , ज्यादा घूमने यहाँ तक की ज्यादा पढाई लिखाई की भी स्वतंत्रता नहीं होती ऐसे में आरभ से ही लड़कियों में हीन भावना पैदा हो जाती है । धीरे धीरे यही सोच लड़कियों को कमजोर बनाती है और लडको को उनपर हावी होने का अवसर प्रदान करती है । बढती छेड़छाड़ की घटनाओ के पीछे यही महत्वपूर्ण कारन है।
दरअसल इसके मूल में समाजीकरण की ही प्रक्रिया है। इसके लिए किसी एक पुरुष या समाज के किसी एक हिस्से को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता वरन जिम्मेदार हमारा पूरा सामाजिक ढांचा है जिसे बदलना ही आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है।
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